यीशु मसीह का जन्म: देवों द्वारा घोषित और बुराई द्वारा खतरे में पड़ा

यीशु मसीह का जन्म: देवों द्वारा घोषित और बुराई द्वारा खतरे में पड़ा

यीशु (येसु सत्संग) के जन्म के कारण संभवतः सबसे व्यापक रूप से मनाया जाने वाला वैश्विक अवकाश – क्रिसमस का त्योहार है। यद्यपि कई लोग क्रिसमस के बारे में जानते हैं, तथापि बहुत कम ही लोग यीशु के जन्म को सुसमाचारों में से जानते हैं। यहाँ दी गई जन्म की कहानी आधुनिक दिनों की सन्ता क्लॉज के साथ मनाई जाने वाली क्रिसमस और उपहारों से कहीं अधिक उत्तम है, और इसलिए यह जानने योग्य है।

बाइबल में यीशु के जन्म के बारे में जानने का एक उपयोगी तरीका यह है कि इसकी तुलना कृष्ण के जन्म के साथ की जाए क्योंकि इन दोनों कहानियों में कई समानताएँ पाई जाती हैं।

कृष्ण का जन्म

विभिन्न शास्त्र कृष्ण के जन्म का भिन्न तरह से विवरण देते हैं। हरिवंशपुराण में, ऐसे मिलता है कि विष्णु को पता चलता है कि राक्षस कालनेमि  ने दुष्ट राजा कंस के रूप में फिर जन्म लिया था। कंस को नष्ट करने का निर्णय लेते हुए, विष्णु ने कृष्ण के रूप में वासुदेव (एक पूर्व ऋषि जिसने ग्वाले के रूप में जन्म लिया था) और उनकी पत्नी देवकी के धर में जन्म लेने के लिए अवतार लिया।

पृथ्वी पर, कंस-कृष्ण की लड़ाई का आरम्भ भविष्यद्वाणी द्वारा हुआ था, जब आकाश से आई एक आवाज ने कंस को यह बताने के लिए घोषणा की कि देवकी का पुत्र कंस को मार देगा। इसलिए कंस देवकी की सन्तान से भयभीत था, और इसलिए उसने उसे और उसके परिवार को कैद करते हुए, उसके बच्चों की हत्या कर दी क्योंकि वह विष्णु के अवतार को किसी भी परिस्थिति में बचने नहीं देना चाहता था।

तथापि, कृष्ण का जन्म देवकी से ही हुआ और, वैष्णव भक्तों के अनुसार, उसके जन्म के तुरंत बाद समृद्धि और शांति का वातावरण था, क्योंकि ग्रह उसके जन्म के लिए स्वचालित रूप से आपस में समायोजित हो गए थे।

पुराण तब इसके पश्चात् नवजात शिशु को कंस द्वारा नष्ट होने से बचाने के लिए वासुदेव (कृष्ण के सांसारिक पिता) के भागने का वर्णन करते हैं। उस जेल को छोड़ कर जाते हुए जहाँ वह और देवकी दुष्ट राजा द्वारा कैद कर दिए गए थे, वासुदेव एक नदी को पार करते हुए बच्चे के साथ बच जाते हैं। बच्चे के साथ एक गाँव में सुरक्षित पहुँचने पर बालक कृष्ण को एक स्थानीय नवजात बालिका के साथ बदल दिया जाता है। कंस को बाद में यही बदली हुई बच्ची मिलती है और वह उसे मार डालता है। शिशुओं की अदला-बदली से अनजान, नंदा और यशोदा (बच्ची के माता-पिता) कृष्ण को अपने स्वयं का मानते हुए एक ग्वाले के रूप में पालन-पोषण करते हैं। कृष्ण के जन्म के दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

इब्रानी वेदों ने यीशु के जन्म की भविष्यद्वाणी की

जैसा कि कंस को भविष्यद्वाणी की गई थी कि देवकी का एक पुत्र उसे मार डालेगा, ठीक वैसे ही इब्रानी संतों को आने वाले मसीहा/मसीह के बारे में भविष्यद्वाणियाँ प्राप्त हुईं थीं। यद्यपि, ये भविष्यद्वाणियाँ यीशु के जन्म से सैकड़ों वर्षों पहले कई भविष्यद्वक्ताओं द्वारा प्राप्त हुईं और लिखी गई थीं। नीचे दी गई समय-रेखा इब्रानी वेदों के कई भविष्यद्वक्ताओं को यह इंगित करती हुई दिखाती है कि उनकी भविष्यद्वाणियों को उन पर प्रकाशित किया गया था और तत्पश्चात् उन्हें लिपिबद्ध किया गया था। उन्होंने एक मृत ठूँठ से उत्पन्न होने वाली एक शाखा के रूप में एक आने वाले व्यक्ति को पहले से ही देख लिया था और उन्होंने उसके नाम – यीशु की भविष्यद्वाणी की।

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इतिहास में यशायाह और अन्य इब्रानी ऋषि (भविष्यद्वक्ता)। यशायाह के समय में ही मिलने वाले मीका पर भी ध्यान दें

यशायाह ने इस आने वाले व्यक्ति के जन्म की प्रकृति के विषय में एक और उल्लेखनीय भविष्यद्वाणी लिपिबद्ध की है। जैसा कि लिखा गया है:

14 इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।

यशायाह 7:14

इसने प्राचीन इब्रानी लोगों को उलझन में डाल दिया। एक कुंवारी के पास पुत्र कैसे हो सकता है? यह असंभव था। यद्यपि भविष्यद्वाणी की गई थी कि यह पुत्र इम्मानुएल होगा, जिसका अर्थ है कि ईश्वर हमारे साथ। यदि परम प्रधान परमेश्वर, जो इस संसार का रचियता है, को जन्म लेना था, तब तो यह सोचने योग्य विषय था। इसलिए इब्रानी वेदों की नकल करने वाले ऋषियों और शास्त्रियों ने वेदों से भविष्यद्वाणी को हटाने का साहस ही नहीं किया, और यह लेखों में सदियों से लिखे हुईं, अपनी पूर्ति की प्रतीक्षा कर रही थीं।

लगभग उसी समय जब यशायाह ने कुंवारी जन्म की भविष्यद्वाणी की, एक अन्य भविष्यद्वक्ता मीका ने भी भविष्यद्वाणी की:

हे ’बैतलहम’ एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हज़ारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझ में से मेरे लिये एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादि काल से होता आया है।

 मीका 5:2

महान राजा दाऊद के पैतृक शहर बैतलहम से, वह शासक आएगा, जिसकी निकलना ’प्राचीन काल से’ – उसके शारीरिक जन्म से बहुत पहले से होता आया है।

मसीह का जन्म – देवों द्वारा घोषित किया गया था

सैकड़ों वर्षों पहले तक यहूदी/इब्रानियों ने इन भविष्यद्वाणियों के पूरा होने की प्रतिक्षा की। कईयों ने आशा छोड़ दी और अन्य उनके बारे में भूल गए थे, परन्तु भविष्यद्वाणियाँ आने वाले दिन की आशंका के गवाह के रूप में मूक बनी रहीं। अन्त में, लगभग ईसा पूर्व 5 में एक विशेष स्वर्गदूत एक जवान स्त्री के लिए एक चौंकाने वाले सन्देश को ले आया। जैसे कंस ने आकाश से एक आवाज सुनी थी,  ठीक वैसे ही इस स्त्री की मुलाकात स्वर्ग से आए एक स्वर्गदूत या देव, जिब्राईल  से हुई। सुसमाचार लिपिबद्ध करते हैं कि:

26 छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया।
27 जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी: उस कुंवारी का नाम मरियम था।
28 और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा; आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साथ है।
29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी, कि यह किस प्रकार का अभिवादन है?
30 स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है।
31 और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना।
32 वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा।
33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।
34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं।
35 स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।
36 और देख, और तेरी कुटुम्बिनी इलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बांझ कहलाती थी छठवां महीना है।
37 क्योंकि जो वचन परमेश्वर की ओर से होता है वह प्रभावरिहत नहीं होता।
38 मरियम ने कहा, देख, मैं प्रभु की दासी हूं, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो: तब स्वर्गदूत उसके पास से चला

गया॥ लूका 1:26-38

जिब्राईल के सन्देश के नौ महीनों बाद, यीशु कुवाँरी मरियम से यशायाह की भविष्यद्वाणी को पूरा करता हुआ जन्म लेगा। परन्तु मीका ने भविष्यद्वाणी की थी कि यीशु का जन्म बैतलहम में होगा, जबकि मरियम तो नासरत में रहती थी। क्या मीका की भविष्यद्वाणी विफल हो जाएगी? सुसमाचार आगे बताता है कि:

न दिनों में औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं।
2 यह पहिली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस सूरिया का हाकिम था।
3 और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने अपने नगर को गए।
4 सो यूसुफ भी इसलिये कि वह दाऊद के घराने और वंश का था, गलील के नासरत नगर से यहूदिया में दाऊद के नगर बैतलहम को गया।
5 कि अपनी मंगेतर मरियम के साथ जो गर्भवती थी नाम लिखवाए।
6 उन के वहां रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए।
7 और वह अपना पहिलौठा पुत्र जनी और उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा: क्योंकि उन के लिये सराय में जगह न थी।
8 और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे।
9 और प्रभु का एक दूत उन के पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उन के चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए।
10 तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिये होगा।
11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है।
12 और इस का तुम्हारे लिये यह पता है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।
13 तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया।
14 कि आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो॥
15 जब स्वर्गदूत उन के पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।
16 और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा।
17 इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उन से कही गई थी, प्रगट की।
18 और सब सुनने वालों ने उन बातों से जो गड़िरयों ने उन से कहीं आश्चर्य किया।
19 परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही।
20 और गड़ेरिये जैसा उन से कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए॥

लूका 2:1-20

उस समय के संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, रोमन सम्राट ने स्वयं एक राजकीय आदेश दिया, जिसके कारण मरियम और यूसुफ नासरत से बैतलहम की ओर जाने के लिए यात्रा पर चल पड़े, जो यीशु के जन्म के ठीक पहले तक की थी। मीका की भविष्यद्वाणी भी पूरी हुई।

कृष्ण की तरह ही एक विनम्र चरवाहे के रूप में, यीशु का जन्म दीन अवस्था में – एक गौशाला में हुआ, जहाँ गायों को और अन्य जानवरों को रखा गया था, और उसे देखने के लिए दीन चरवाहे ही आए। तथापि स्वर्गदूतों या देवों ने उसके जन्म के विषय में गीत गाया था।

दुष्ट की ओर से खतरे में पड़ना

कृष्ण के जन्म के समय उसका जीवन राजा कंस की ओर से खतरे में था, जो स्वयं को उसके आगमन से खतरा में पड़ा हुआ महसूस करता था। ठीक इसी तरह, यीशु के जन्म के समय उसका जीवन स्थानीय राजा हेरोदेस की ओर से खतरे में पड़ गया था। हेरोदेस किसी अन्य राजा (यही तो ’मसीह का अर्थ’ है) की ओर से अपने शासन को खतरे में पड़ा हुआ नहीं देखना चाहता था। सुसमाचार व्याख्या करते हैं कि:

रोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ, तो देखो, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे।
2 कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उस को प्रणाम करने आए हैं।
3 यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया।
4 और उस ने लोगों के सब महायाजकों और शास्त्रियों को इकट्ठे करके उन से पूछा, कि मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए?
5 उन्होंने उस से कहा, यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा यों लिखा है।
6 कि हे बैतलहम, जो यहूदा के देश में है, तू किसी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सब से छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल की रखवाली करेगा।
7 तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उन से पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था।
8 और उस ने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, कि जाकर उस बालक के विषय में ठीक ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूं।
9 वे राजा की बात सुनकर चले गए, और देखो, जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उन के आगे आगे चला, और जंहा बालक था, उस जगह के ऊपर पंहुचकर ठहर गया॥
10 उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए।
11 और उस घर में पहुंचकर उस बालक को उस की माता मरियम के साथ देखा, और मुंह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया; और अपना अपना यैला खोलकर उसे सोना, और लोहबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई।
12 और स्वप्न में यह चितौनी पाकर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए॥
13 उन के चले जाने के बाद देखो, प्रभु के एक दूत ने स्वप्न में यूसुफ को दिखाई देकर कहा, उठ; उस बालक को और उस की माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूं, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूंढ़ने पर है कि उसे मरवा डाले।
14 वह रात ही को उठकर बालक और उस की माता को लेकर मिस्र को चल दिया।
15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा; इसलिये कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था कि मैं ने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया पूरा हो।
16 जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने मेरे साथ ठट्ठा किया है, तब वह क्रोध से भर गया; और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस पास के सब लड़कों को जो दो वर्ष के, वा उस से छोटे थे, मरवा डाला।
17 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ,
18 कि रामाह में एक करूण-नाद सुनाई दिया, रोना और बड़ा विलाप, राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी, और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे हैं नहीं॥

मत्ती 2:1-18

यीशु और कृष्ण के जन्म में बहुत सी बातें सामान्य मिलती है। कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में स्मरण किया जाता है। लॉगोस के रूप में, यीशु का जन्म परम प्रधान परमेश्वर का देहधारण था, जो कि संसार का रचियता है। दोनों ही जन्मों की भविष्यद्वाणियों पहले से की गई थी, दोनों ही जन्मों में स्वर्गदूतों का उपयोग किया जाता है, और दोनों ही उनके आने का विरोध करने वाले दुष्ट राजाओं द्वारा खतरे में पड़ गए थे।

परन्तु यीशु के विस्तृत जन्म के पीछे क्या उद्देश्य था? वह क्यों आया था? मानवीय इतिहास के आरम्भ से ही, परम प्रधान परमेश्वर ने घोषित कर दिया था कि वह हमारी सबसे गहरी आवश्यकताओं को पूरा करेगा। जैसे कृष्ण कालनेमि को नष्ट करने के लिए आए थे, वैसे ही यीशु अपने विरोधी को नष्ट करने के लिए आए, जो हमें बंदी बनाए हुआ था। जैसे-जैसे हम सुसमाचारों में यीशु के जीवन का पता लगाते चले जाएंगे, वैसे-वैसे हम इसके विषय में और अधिक सीखते चले जाएगें कि यह हम पर कैसे लागू होता है, और आज हमारे लिए इसका क्या अर्थ है।