यीशु सभी लोगों के लिए स्वयं का बलिदान देने के लिए आया । यही सन्देश प्राचीन ऋग्वेद के भजनों में प्रतिछाया स्वरूप और साथ ही साथ प्रतिज्ञाओं में और प्राचीन इब्रानी वेदों में मिलता है। यीशु उस प्रश्न का उत्तर है जिसे हम प्रत्येक बार उच्चारित की गईप्ररथा स्नाना (या प्रतासना) मंत्र की प्रार्थना के समय पूछते हैं। ऐसे कैसे हो सकता है? बाइबल (वेद पुस्तक) कर्मों की एक ऐसी व्यवस्था की घोषणा करती है जो हम सभों को प्रभावित करती है:
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है…(रोमियों 6:23)
नीचे मैंने एक उदाहरण के द्वारा कर्मों की व्यवस्था को दिखलाया है। “मृत्यु” का अर्थ सम्बन्ध विच्छेद से है। जब हमारे प्राण हमारे शरीर से अलग हो जाते हैं तो हम शारीरिक रूप से मर जाते हैं। इसी तरह से हम परमेश्वर से आत्मिक रूप से अलग हो जाते हैं। ऐसा इसलिये सत्य है क्योंकि परमेश्वर पवित्र (पाप रहित) है।
हम स्वयं का चित्रण ऐसे कर सकते हैं जैसे एक चोटी पर तो हम हैं और दूसरी चोटी पर परमेश्वर स्वयं है और हम इस पाप की अथाह खाई से अलग किए हुए हैं ।
यह विच्छेद दोष और डर को उत्पन्न करता है। इसलिए हम स्वाभाविक रूप से एक पुल को निर्मित करने का प्रयास करते हैं जो हमें हमारी तरफ से (मृत्यु से) परमेश्वर की ओर ले जाए। हम बलिदानों को अर्पण करते हैं, पूजा पाठ करते हैं, तपस्या को करते हैं, त्योहारों में भागी होते हैं, मन्दिरों में जाते हैं, कई तरह की प्रार्थनाएँ करते हैं और यहाँ तक कि हम पाप को न करने या कम करने की कोशिशें करते हैं। कर्मों की यह सूची सद्कर्मों को प्राप्त करने के लिए हम में से कइयों के लिए लम्बी हो सकती है । समस्या यह है कि हमारे प्रयास, सद्गुण, बलिदान और तपस्या से भरे हुए कार्य आदि., यद्यपि स्वयं में बुरे नहीं हैं, परन्तु फिर भी पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि जिस कीमत की अदायगी (मजदूरी) की आवश्यकता हमारे पापों के लिए है वह मृत्यु है। इसका चित्रण अगले चित्र में किया गया है।
हमारे धार्मिक प्रयासों के द्वारा हम ऐसे ‘पुल’ का निर्माण करते हैं जो कि परमेश्वर से अलग होने वाले मार्ग को पाटने की कोशिश करे। यद्यपि यह बुरा नहीं हैं, तौभी यह हमारी समस्या का समाधान नहीं करता है क्योंकि यह दूसरी तरफ पहुँचाने में पूरी तरह से सफल नहीं होता है। हमारे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। यह कैंसर (जिसका अन्त मृत्यु ही है) को केवल साग सब्जियों को खाकर ही ठीक करने के प्रयास जैसा ही है। साग सब्जियाँ खाना बहुत अच्छा है – परन्तु यह कैंसर को चंगा नहीं करता है । इसके लिए आपको पूरी तरह से एक भिन्न उपचार की अवश्यकता है । हम इन प्रयासों को एक धार्मिक सद्गुणों के एक ऐसे ‘पुल’ के रूप में चित्रित कर सकते हैं जो कि केवल-कुछ-दूरी तक ही खाई में जाते हुए – हमें फिर भी परमेश्वर से अलग ही रखता है।
कर्मों की व्यवस्था एक बुरा समाचार है – यह इतना बुरा है कि अक्सर हम इसके बारे में सुनना ही पसंद नहीं करते हैं और हम अक्सर अपने जीवनों को कई तरह की गतिविधियों और ऐसे बातों से यह आशा करते हुए भर देते हैं कि यह व्यवस्था चली जाएगी – और ऐसा तब तक करते हैं जब हमारी परिस्थितियों का बोझ हमारे प्राणों को चारों ओर से घेर लेता है। परन्तु बाइबल कर्मों की व्यवस्था के साथ अन्त नहीं होती है।
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है परन्तु …(रोमियों 6:23)
छोटा सा शब्द ‘परन्तु’ यहाँ पर व्यवस्था की दिशा को दिखलाता है कि यह अब किसी और ही तरफ, अर्थात् शुभ सन्देश – सुसमाचार की ओर जाने के लिए तैयार है। यह वैसी कर्मों की व्यवस्था है जो मोक्ष और प्रकाशित होने वाले एक व्यक्ति के लिए आरक्षित की गई है। इस लिए अब मोक्ष की व्यवस्था क्या है?
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है (रोमियों 6:23)
सुसमाचार का शुभ सन्देश यह है कि यीशु की मृत्यु का बलिदान परमेश्वर और हमारे मध्य की खाई को पाटने वाले पुल के लिए पर्याप्त है। हम इसे जानते हैं क्योंकि अपनी मृत्यु के तीन दिन पश्चात् यीशु शारीरिक रूप से पुन: जी उठा, भौतिक रूप से पुनरूत्थान के द्वारा वह एक बार फिर से जीवित हो उठा । यद्यपि कुछ लोग आज यीशु के जी उठने में अविश्वास करना चुनते हैं परन्तु इसके विरोध में एक शक्तिशाली प्रमाण दिखाई देता है जिसे इस सार्वजनिक भाषण में दिया गया है जो कि मैंने एक विश्वविद्यालय में दिया था (इस विडियो लिंकको खोलें)। प्रभु यीशु ने स्वर्ग में प्रवेश किया और स्वयं की भेंट परमेश्वर को चढ़ाई। एक अर्थ में, उसने ऐसी पूजा अर्थात् अराधना को, सभी लोगों के बदले में, स्वयं की भेंट चढाते हुए, पाप के शोधन के लिए स्वयं को अर्पण करते हुए किया, जो परमेश्वर को स्वीकारयोग्य है।
यीशु वह पुरूष है जिसने पूर्ण बलिदान को दिया । क्योंकि वह एक मनुष्य था इसलिए वह पुल को बनने के योग्य है जो उस खाई को पाट देती है और इस तरफ के मनुष्य हिस्से को छूता है और क्योंकि वह पूर्ण है इसलिए वह परमेश्वर की तरफ के हिस्से को भी छूता है। वह जीवन का पुल है और इसे नीचे इस तरह से चित्रित किया जा सकता है
इस बात में ध्यान दें कि कैसे यीशु का बलिदान हमें दिया गया है । यह हमें एक …‘वरदान‘ अर्थात् उपहार के रूप में दिया गया है। इस वरदान अर्थात् उपहार के बारे में सोचें। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि यह वरदान क्या है, यदि यह वास्तव में एक वरदान है तो यह ऐसा है कि जिसके लिए आपने कुछ कार्य नहीं किया है और यह कि आप इसे अपने सद्गुणों के अनुसार कमा नहीं सकते हैं। यदि आप इसे कमा लेते हैं तो यह फिर एक उपहार के रूप में नहीं रह जाता है! इसी तरह से आप यीशु के बलिदान को सद्गुणों या अपनी कमाई से कमा नहीं सकते हैं। यह आपको वरदान अर्थात् उपहार के रूप में दिया जाता है।
और यह उपहार क्या है ? यह ‘अनन्त जीवन‘ है । इसका अर्थ यह है कि जो पाप आपके ऊपर मृत्यु को लाया वह अब निरस्त अर्थात् रद्द कर दिया गया है । यीशु का बलिदान वह पुल है जिसके ऊपर चल कर आप परमेश्वर के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं और जीवन को – जो सदैव बना रहेगा – प्राप्त कर सकते हैं । यह वरदान अर्थात् उपहार यीशु के द्वारा दिया गया है जो, मृतकों में जी उठने के द्वारा, स्वयं को ‘प्रभु’ के रूप में प्रकट करता है।
इस तरह कैसे मैं और आप जीवन के इस पुल को ‘पार’ करते हैं जिसे यीशु हमें एक वरदान के रूप में देता है? एक बार फिर से, उपहारों के बारे में सोचें। यदि कोई आपके पास आता है और आपको एक उपहार देता है ऐसा उपहार जिसके लिए आपने कोई कार्य नहीं किया है। परन्तु इस उपहार से लाभ पाने के लिए आपको इसके ‘प्राप्त’ कर लेना होगा। जब कभी भी किसी एक उपहार को दिया जाता है तो इसके दो विकल्प होते हैं। या तो उपहार को अस्वीकार कर दिया जाए (“नहीं, आपका धन्यवाद”) या इसे स्वीकार कर लिया जाए (“इस उपहार के लिए आपका धन्यवाद। मैं इसे ले लेता हूँ”)। इस तरह से यह उपहार जिसे यीशु आपको दे रहा है को भी स्वीकार कर लेना चाहिए। इसमें केवल साधारण रूप से ‘विश्वास’, इसका ‘अध्ययन’, या इसे ‘समझना’ मात्र ही नहीं किया जाना चाहिए। इसका चित्रण अगले चित्र में किया गया है जहाँ पर हम परमेश्वर की ओर मुड़ने के लिए पुल पर ‘चलते’ हैं और उस उपहार को प्राप्त करते हैं जिसे वह हमें देने का प्रस्ताव दे रहा है।
इस लिए अब कैसे इस उपहार को प्राप्त किया जाता है ? बाइबल कहती है कि
जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा (रोमियों 10:12)
ध्यान दें यह प्रतिज्ञा ‘हर किसी’ के लिए है, न कि किसी विशेष धर्म, जाति या देश के लिए । क्योंकि वह मृतकों में जी उठा है इसलिए यीशु यहाँ तक कि अब भी जीवित है और वह ‘प्रभु’ है। इसलिए यदि आप उसको पुकारेंगे तो वह सुनेगा आपको अपने जीवन का उपहार देगा। आपको उसे – उसके साथ वार्तालाप करते हुए – पुकारना चाहिए और उससे माँगना चाहिए । कदाचित् आपने यह कभी नहीं किया होगा। यहाँ पर दिशानिर्देश दिया गया है जो कि आपको उसके साथ वार्तालाप करने और उससे प्रार्थना करने में सहायता प्रदान कर सकता है । यह कोई जादू से भरा हुआ मंत्र नहीं है। ये कोई विशेष शब्द नहीं हैं जो कि सामर्थ्य देते हैं। यह उसकी योग्यता और उसके द्वारा हमें उपहार देने की इच्छा के ऊपर भरोसा करना है। जब हम उस पर भरोसा करते हैं तो वह हमारी सुनता है और उत्तर देता है । इसलिए इस दिशानिर्देश का अनुसरण करने के लिए स्वतंत्रता को महसूस करें जब आप ऊँची आवाज में या अपनी आत्मा में यीशु से बात करते हैं और उसके उपहार को प्राप्त करते हैं ।
हे प्यारे प्रभु यीशु, मैं समझता हूँ कि मेरे जीवन के पापों के साथ मैं परमेश्वर से अलग हूँ। यद्यपि मैंने अपनी सर्वोत्तम कोशिशें की हैं, तौभी मेरा कोई प्रयास और बलिदान इस सम्बन्ध विच्छेद को पाट नहीं सकता है । परन्तु मैं समझता हूँ कि आपकी मृत्यु एक ऐसा बलिदान है जो हमारे सारे पापों को धो डालता है – यहाँ तक कि मेरे पापों को भी । मैं विश्वास करता हूँ कि आप अपने बलिदान के पश्चात मृतकों में जी उठे इस तरह से मैं जानता हूँ कि आपका बलिदान पर्याप्त है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझे मेरे पापों से शुद्ध करें और मुझे परमेश्वर के पास ले आएँ ताकि मैं अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकूँ । मैं ऐसे जीवन को नहीं चाहता हूँ जो पाप का गुलाम हो इसलिए कृप्या करके मुझे इन पापों से शुद्ध करें जिन्होंने मुझे कर्म बन्धन में जकड़ा हुआ है। हे प्रभु यीशु, मेरे लिए यह सब कुछ करने के लिए और अब निरन्तर मुझे मेरे जीवन में मेरे प्रभु के रूप में मार्गदर्शन देते रहने के लिए आपका धन्यवाद।