दुर्वासा शकुंतला को शाप देता हैं
हम पुराणों में शापों (श्राप) के बारे में पढ़ते और सुनते हैं। शायद यह शाप सबसे अधिक प्रसिद्ध, प्राचीन नाटककार कालिदास (400 ईस्वी सन्) के अभिज्ञान शाकुन्तलम् (शकुंतला की स्वीकृति) नाटक में मिलता है, जिसका मंचन आज भी नियमित रूप से किया जाता है। इसमें राजा दुष्यंत जंगल में मिलने वाली एक खूबसूरत स्त्री शकुंतला से मिलते हैं और उसके प्रेम में पड़ जाते हैं। दुष्यंत जल्दी ही उससे विवाह कर लेते हैं, परन्तु जल्द ही उन्हें राजपाठ के कार्यों के लिए राजधानी लौटना होगा और इसलिए वह प्रस्थान करते हैं, वह शकुंतला को छाप लगाने वाली अपनी अंगूठी के साथ छोड़ देते हैं। शकुंतला, गहरे प्रेम में पड़े हुए, अपने नए पति के ख्यालों में डूबी रहती है।
जब वह अपने काल्पनिक संसार में खोई हुई थी तब वहाँ उसके सामने से एक शक्तिशाली ऋषि दुर्वासा गुजरे, क्योंकि उसने ऋषि पर कोई ध्यान न दिया और उनका अभिवादन नहीं किया परिणामस्वरूप ऋषि क्रोधित हो गए। इसलिए उन्होंने उसे शाप दिया कि वह जिस किसी के बारे में कल्पना कर रही थी, वह उससे सदैव अपरिचित रहेगी। फिर उसने शाप के प्रभाव को यह कहते हुए कम कर दिया कि यदि वह उस व्यक्ति द्वारा दिए गए उपहार को वापस कर दे तो वह उसे स्मरण करेगा। इसलिए शकुंतला ने अंगूठी के साथ राजधानी की यात्रा इस आशा को करते हुए की कि राजा दुष्यंत उसे स्मरण करेंगे। परन्तु उस यात्रा में अंगूठी कहीं खो गई परिणामस्वरूप राजा ने उसके पहुँचने पर उसे नहीं पहचाना।
भृगु विष्णु को शाप देते हैं
मतस्य पुराण सदा देव-असुर युद्धों के बारे में बताता है, जिसमें देवता सदैव जीतते हैं। अपमानित, असुरों के गुरु, शुक्राचार्य, शिव के मृतसंजीवनी स्तोत्र, या असुरों को अजेय बनाने के लिए शिव से संपर्क स्थापित किया, और इसलिए उसने अपने असुरों को अपने पिता (भृगु) के आश्रम में शरण लेने दी। परन्तु शुक्राचार्य के जाने के बाद, देवों ने असुरों पर फिर से आक्रमण किया। यद्यपि, असुरों ने भृगु की पत्नी से सहायता प्राप्त की, जिसने इंद्र को गतिहीन कर दिया। बदले में इंद्र ने भगवान् विष्णु से छुटकारा पाने के लिए आग्रह किया। विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भृगु की पत्नी का सिर काटकर अलग कर दिया। जब ऋषि भृगु ने देखा कि उनकी पत्नी के साथ क्या हुआ है, तो उन्होंने विष्णु को पृथ्वी पर बार-बार जन्म लेने का शाप दिया, जिससे कि वे सांसारिक जीवन की पीड़ा से पीड़ित हों। इसलिए, विष्णु को कई बार अवतार लेना पड़ा।
कहानियों में शाप बहुत अधिक डरावने मिलते हैं, परन्तु वे यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा हुआ था या नहीं। दुर्वासा का शकुंतला को या भृगु का विष्णु को शाप दिया जाना गंभीरता को उत्पन्न करता है यदि हम यह जाने लें कि वास्तव में ऐसा ही हुआ था।
यीशु ने पवित्र सप्ताह के दिन 3 में इसी तरह के एक शाप को दिया था। पहले हम सप्ताह की समीक्षा करते हैं।
यीशु की ओर से बढ़ता हुआ संघर्ष
यीशु के द्वारा भविष्यद्वाणी किए हुए रविवार के दिन यरूशलेम में प्रवेश करने के बाद और फिर सोमवार के दिन मंदिर को बंद करने से, यहूदी अगुवों ने उसे मारने की योजना बनाई। परन्तु ऐसा सीधे-सीधे नहीं होगा।
परमेश्वर ने यीशु को अपने फसह के मेम्ने के रूप में चुना था जब यीशु ने निसान 10 के दिन मंदिर में प्रवेश किया था। इब्रानी वेद संचालित करते हैं कि चुने हुए फसह के मेम्नों के साथ क्या करना है
और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से। 6और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना।
निर्गमन 12:5ब-6अ
जैसे लोग फसह के अपने मेम्ने की देखभाल करते हैं, ठीक वैसे ही परमेश्वर फसह के अपने मेम्ने की देखभाल की और यीशु के शत्रु उसे (अभी तक) पकड़ नहीं पाए थे। इसलिए सुसमाचार लिपिबद्ध करता है कि यीशु ने उस सप्ताह के अगले दिन, मंगलवार, दिन 3 में क्या किया।
यीशु ने अंजीर के पेड़ को शाप दिया
17तब वह उन्हें छोड़कर (सोमवार दिन 2, निसान 10) नगर के बाहर बैतनिय्याह को गया और वहाँ रात बिताई। 18भोर (मंगलवार निसान 11, दिन 3) को जब वह नगर को लौट रहा था तो उसे भूख लगी। 19सड़क के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पाकर उससे कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगें।” और अंजीर का पेड़ तुरन्त सूख गया।
मत्ती 21:17-19
उसने ऐसा क्यों किया?
इसका क्या अर्थ था?
अंजीर के पेड़ का अर्थ
पूर्व में आए भविष्द्वक्ताओं ने इसके विषय में हमें समझ दी है। यहाँ देखें कि कैसे इब्रानी वेदों ने इस्राएल पर न्याय के चित्र के लिए अंजीर के पेड़ का उपयोग किया है:
होशे इससे भी आगे, अंजीर के पेड़ के चित्र का उपयोग करते हुए और फिर इस्राएल को शाप देते हुए बताता है:
10 मैं ने इस्राएल को ऐसा पाया जैसे कोई जंगल में दाख पाए; और तुम्हारे पुरखाओं पर ऐसे दृष्टि की जैसे अंजीर के पहिले फलों पर दृष्टि की जाती है। परन्तु उन्होंने पोर के बाल के पास जा कर अपने तईं लज्जा का कारण होने के लिये अर्पण कर दिया, और जिस पर मोहित हो गए थे, वे उसी के समान घिनौने हो गए।
होशे 9:10
16 एप्रैम मारा हुआ है, उनकी जड़ सूख गई, उन में फल न लगेगा। और चाहे उनकी स्त्रियां बच्चे भी न जनें तौभी मैं उनके जन्मे हुए दुलारों को मार डालूंगा॥
होशे 9:16-17 (एप्रैम = इस्राएल)
17 मेरा परमेश्वर उन को निकम्मा ठहराएगा, क्योंकि उन्होंने उसकी नहीं सुनी। वे अन्यजातियों के बीच मारे मारे फिरेंगे॥
586 ईसा पूर्व में यरूशलेम के विनाश ने इन और मूसा के शापों (इतिहास देखें) को पूरा किया। जब यीशु ने अंजीर के पेड़ को शाप दिया, तो वह प्रतीकात्मक रूप से यरूशलेम पर आने वाले एक और विनाश और इसकी भूमि से यहूदियों के निर्वासित होने का उच्चारण कर रहा था। उसने उन्हें फिर से निर्वासित होने का शाप दिया।
अंजीर के पेड़ को शाप देने के बाद, यीशु ने मंदिर में फिर से प्रवेश किया, शिक्षा दी और बहस की। सुसमाचार इसे इस तरह से लिपिबद्ध करता है।
शाप अधिकार जमा लेता है
हम इतिहास से जानते हैं कि यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश, और यहूदियों का विश्वव्यापी निर्वासन 70 ईस्वी सन् में हुआ। इनमें से कुछ निर्वासित यहूदी भारत में आए।
70 ईस्वी सन् में मंदिर के नाश के साथ ही इस्राएल का सूखना आरम्भ हुआ और यह हजारों वर्षों तक मुरझाया रहा।
यह शाप केवल सुसमाचार कहानी के पृष्टों तक ही सीमित नहीं है। हम इतिहास में इस घटना के घटित होने को सत्यापित कर सकते हैं, जिसने भारत के इतिहास को भी प्रभावित किया। यीशु द्वारा उच्चारित सूखाने का यह शाप वास्तव में सामर्थी था। उसके दिन में लोगों ने उसे उनके अपने विनाश के लिए इसे अनदेखा कर दिया था।
मंदिर के विनाश का प्रदर्शन आज भी चल रहा है
शाप समाप्त हो जाएगा।
यीशु ने बाद में स्पष्ट किया कि वह शाप कैसे आएगा और यह कब तक चलेगा।
वे (यहूदी) तलवार के कौर हो जाएँगे, और सब देशों के लोगों में बन्दी होकर पहुँचाए जाएँगे; और जब तक अन्य जातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियों से रौंदा जाएगा।
लूका 21:24
उसने शिक्षा दी कि उसका शाप (निर्वासन और यरूशलेम पर गैर-यहूदी नियंत्रण) केवल तब ‘तक चलेगा जब तक कि अन्यजातियों (गैर-यहूदियों) का समय पूरा नहीं हो जाता’, यह भविष्यद्वाणी करते हुए कि उसका शाप समाप्त हो जाएगा। उसने इसे आगे 4थे दिन में समझाया है।
शाप हटा लिया गया
यहाँ विवरण के साथ यह समयरेखा यहूदियों के इतिहास को दिखाती हैं। आज के आधुनिक दिन में, इस समयरेखा से पता चलता है कि निर्वासन समाप्त हो गया है। 1948 में, संयुक्त राष्ट्र की एक घोषणा के अनुसार, आधुनिक राज्य इस्राएल की स्थापना हुई थी। 1967 के छह दिवसीय युद्ध में उन्होंने यरूशलेम शहर पर कब्जा कर लिया, जो अब इस्राएल की राजधानी है। हम समाचार के उल्लेखों पाते हैं कि ‘अन्यजातियों के समय’ का अन्त हो रहा है।
यीशु के शाप का आरम्भ और समाप्ति, जो प्रतीकात्मक रूप से अंजीर के पेड़ के लिए बोला गया और फिर उसके श्रोताओं को समझाया गया था, केवल सुसमाचार के पृष्ठों पर ही नहीं मिलता है। ये घटनाएँ सत्य हैं, आज समाचारों की सुर्खियाँ बनती हैं (उदाहरण के लिए, यूएसए ने अपने दूतावास को यरूशलेम में स्थानांतरित कर दिया)। यीशु ने बड़े ओजस्वी तरीके से शिक्षा दी, प्राकृति के ऊपर ‘ओम’ बोलते हुए और अब हम देखते हैं कि उसका शाप हजारों वर्षों तक राष्ट्रों पर अपनी छाप को छोड़ता है। हम उसे अपने संकट में अनदेखा करते हैं।
यीशु के शाप का आरम्भ और समाप्ति, जो प्रतीकात्मक रूप से अंजीर के पेड़ के लिए बोला गया और फिर उसके श्रोताओं को समझाया गया था, केवल सुसमाचार के पृष्ठों पर ही नहीं मिलता है। ये घटनाएँ सत्य हैं, आज समाचारों की सुर्खियाँ बनती हैं (उदाहरण के लिए,यूएसए ने अपने दूतावास को यरूशलेम में स्थानांतरित कर दिया)। यीशु ने बड़े ओजस्वी तरीके से शिक्षा दी, प्राकृति के ऊपर ‘ओम’ बोलते हुए और अब हम देखते हैं कि उसका शाप हजारों वर्षों तक राष्ट्रों पर अपनी छाप को छोड़ता है। हम उसे अपने संकट में अनदेखा करते हैं।
दिन 3 का सारांश
अपडेट किया गया चार्ट यीशु को मंगलवार दिन 3, में अंजीर के पेड़ को शाप देते हुए दिखाता है, जबकि साथ ही परमेश्वर के चुने हुए मेम्ने के रूप में उस पर ध्यान देता है। 4थे दिन वह अपनी आने वाली वापसी का वर्णन करता है, एक कल्कि जो सभी गलतियों को सही करेगा।