हमने सीखा कि प्राचीन वेदों ने आने वाले व्यक्ति की ओर पहले से ही कैसे देखा था। हमने ऋग्वेद में पुरुष सूक्ति की पुस्तक के साथ आरम्भ किया था। तत्पश्चात् हमने इब्रानी वेदों के साथ अपने अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए, यह सुझाव दिया कि संस्कृत और इब्रानी वेदों (बाइबल) दोनों की भविष्यद्वाणी यीशु सत्संग (नासरत के यीशु) के द्वारा पूरी की गई थी।
इस कारण क्या नासरत का यीशु भविष्यद्वाणी किया हुआ पुरुष या मसीह था? क्या उसका आना केवल मात्र एक निश्चित धार्मिक समूह के लिए ही था, या वह सभों के लिए आ रहा था – जिसमें सभी जातियाँ, वर्ण से लेकर अवर्ण सभी सम्मिलित हैं।
पुरुष सूक्ति में जाति (वर्ण) व्यवस्था
पुरुष सूक्ति ने इस पुरुष के बारे में ऐसा कहा है कि:
पुरुष सूक्ति श्लोक 11-12 – संस्कृत में | हिन्दी अर्थ |
यतपुरुषंवयदधुःकतिधावयकल्पयन | मुखंकिमस्यकौबाहूकाऊरूपादाउच्येते || बराह्मणो.अस्यमुखमासीदबाहूराजन्यःकर्तः | ऊरूतदस्ययदवैश्यःपद्भ्यांशूद्रोअजायत || | 11 जब उन्होंने इस पुरुष को विभाजित किया तो उन्होंने उसके कितने टुकड़े बनाए? वे उसके मुँह, उसकी बाहों को क्या कहते हैं? वे उसकी जांघों और पैरों को क्या कहते हैं? 12 ब्राह्मण उसका मुँह था, उसकी दोनों बाहों से राजान्या बने थे। उसकी जांघ वैश्य बन गईं, उसके पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई थी। |
संस्कृत वेदों में जाति या वर्ण का यह पहला उल्लेख मिलता है। यह इस पुरुष के शरीर से अलग होने वाली चार जातियों की बात करता है। ब्राह्मण जाति/वर्ण उसके मुँह से आई, राजान्या (जिसे आज क्षत्रिय जाति/वर्ण के रूप में जाना जाता है), उसकी जांघ से वैश्य जाति/वर्ण, और उसके पैरों से शुद्र जाति आई थी। वेद रचित पुरुष होने के लिए यीशु को इन सभी जातियों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होना चाहिए।
क्या वह है?
ब्राह्मण और क्षत्रिय के रूप में मसीह
हमने देखा कि ‘क्राइस्ट’ या मसीह एक प्राचीन इब्रानी पदवी है जिसका अर्थ है ‘शासक’ – वास्तव में राजाओं के राजा से है। ‘मसीह’ के रूप में, यीशु पूरी तरह से क्षत्रिय के साथ अपनी पहचान करता है और उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। हमने यह भी देखा कि ‘शाखा’ के रूप में यीशु को एक पुरोहित के रूप में आने का भविष्यद्वाणी की गई थी, इसलिए वह पूरी तरह से अपनी पहचान ब्राह्मण के साथ करता है और उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। सच्चाई तो यह है कि इब्रानी भविष्यद्वाणी ने यह संकेत दिया है कि वह एक पुरोहित अर्थात् याजक और राजा दोनों की भूमिकाओं को एक व्यक्ति में ही एक कर देगा।
‘…वही महिमा पाएगा और अपने सिंहासन पर विराजमान होकर प्रभुता करेगा। उसके सिंहासन के पास एक याजक भी रहेगा और दोनों के बीच मेल की सम्मति होगी।’ (जकर्याह 6:13)
यीशु वैश्य के रूप में
इब्रानी ऋषिगणों/भविष्यद्वक्ताओं ने यह भी भविष्यवाणी की कि आने वाला पुरूष एक व्यापारी के जैसे होने के कारण, एक व्यापारी बन जाएगा। इस भविष्यद्वाणी को यशायाह (750 ईसा पूर्व) ने बाइबल में किया था:
मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है और मैं तुझ से प्रेम रखता हूँ, इस कारण मैं तेरे बदले मनुष्यों को और तेरे प्राण के बदले में राज्य राज्य के लोगों को दे दूँगा। (यशायाह 43:3)
यहां पर परमेश्वर भविष्यद्वाणी के रूप में आने वाले के बारे में भविष्यद्वाणी, यह कहते हुए कर रहा है कि वह वस्तुओं का व्यापार नहीं करेगा, अपितु वह अपने जीवन के बदले में लोगों का व्यापार करेगा। इस तरह से आने वाला यह पुरूष अर्थात् व्यक्ति एक व्यापारी होगा, जो लोगों को मुक्त करने का व्यापार करेगा। एक व्यापारी के रूप में वह वैश्य के साथ स्वयं की पहचान करता है और उनका प्रतिनिधित्व कर सकता है।
शूद्र – दास
ऋषिगणों/भविष्यद्वक्ताओं ने एक दास या शूद्र के रूप में इस आने वाले व्यक्ति की भूमिका के बारे में विस्तार से बताया है। हमने देखा कि कैसे भविष्यद्वक्ताओं ने भविष्यद्वाणी की थी कि शाखा एक दास अर्थात् नौकर भी होगा जिसका काम पापों को दूर करना होगा:
“‘हे यहोशू महाजायक, तू सुन ले और तेरे भाईबन्धु जो तेरे सामने खड़े हैं वे भी सुनें, क्योंकि वे मनुष्य शुभ शकुन हैं : सुनो, मैं अपने दास शाख को प्रगट करूँगा…और इस देश के अधर्म को एक ही दिन में दूर कर दूँगा। (जकर्याह 3:8-9)
आने वाली शाखा, जो कि एक पुरोहित, शासक और व्यापारी की थी, साथ ही एक दास – शूद्र भी थी। यशायाह ने दास (शूद्र) के रूप में इस पुरूष की भूमिका के बारे में विस्तार से भविष्यद्वाणी की। इस भविष्यद्वाणी में परमेश्वर इस शूद्र पुरूष के कामों के ऊपर ध्यान देने के लिए इस्राएल से ‘दूर’ सभी जातियों को परामर्श देता है (जिसमें आप और मैं सम्मिलित हैं)।
1 हे द्वीपो, मेरी और कान लगाकर सुनो;
हे दूर दूर के राज्यों के लोगो, ध्यान लगाकर मेरी सुनो!
यहोवा ने मुझे गर्भ ही में से बुलाया,
जब मैं माता के पेट में था, तब ही उस ने मेरा नाम बताया।
2 उस ने मेरे मुँह को चोखी तलवार के समान बनाया
और अपने हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा;
उस ने मुझ को चमकीला तीर बनाकर अपने तर्कश में गुप्त रखा।
3 और मुझ से कहा, “तू मेरा दास इस्राएल है,
मैं तुझ में अपनी महिमा प्रगट करूँगा।”
तब मैं ने कहा, “मैं ने तो व्यर्थ परिश्रम किया,
4 मैं ने व्यर्थ ही अपना बल खो दिया है;
तौभी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है
और मेरे परिश्रम का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।”
5 अब यहोवा जिसने मुझे जन्म ही से इसलिये रख
कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊँ
अर्थात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूँ,
क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूँ
और मेरा परमेश्वर मेरा बल है –
6 उसी ने मुझ से यह भी कहा है: यह तो हलकी सी बात है
कि तू याकूब के गोत्रों का उद्धार करने
और इस्राएल के रक्षित लोगों को लौटा ले आने के लिये मेरा सेवक ठहरे;
मैं तुझे जाति-जाति के लिये ज्योति ठहराऊँगा
कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।” (यशायाह 49:1-6)
यद्यपि इब्रानी/यहूदी जाति से आने वाले की भविष्यद्वाणी ने यह कहा है कि इस दास की सेवा ‘पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाएगी’। यद्यपि यहूदी, यीशु की सेवा ने वास्तव में पृथ्वी की सभी जातियों को स्पर्श किया है, जैसा कि इस दास के प्रति भविष्यद्वाणी की गई थी। दास के रूप में, यीशु पूरी तरह से अपनी पहचान सभी शूद्र के साथ करता है और उनका प्रतिनिधित्व कर सकता है।
अवर्ण का भी प्रतिनिधित्व किया गया है
सभी लोगों के लिए मध्यस्थता करने के लिए यीशु को अवर्ण, या अनुसूचित जातियों, जनजातियों और दलितों का भी प्रतिनिधित्व करना होगा। यह कैसे होगा? यशायाह की एक और भविष्यद्वाणी ने पहले से कह दिया गया है कि वह पूरी तरह तोड़ा जाएगा और तुच्छ जाना जाएगा। उन्हें हम सभों के द्वारा अवर्ण के रूप में देखा जाएगा।
किस तरह से?
यहाँ कुछ स्पष्टीकरणों के साथ भविष्यद्वाणी को पूरी तरह से दिया गया है। आप देखेंगे कि यह ‘वह’ और ‘उसे’ होने की बात करता है, इसलिए यह एक आने वाले व्यक्ति अर्थात् पुरूष की भविष्यद्वाणी कर रही है। क्योंकि भविष्यद्वाणी ‘जड़’ के चित्र का उपयोग करती है, इसलिए हम जानते हैं कि यह उसी शाखा का वर्णन कर रही है, जो पुरोहित और शासक थी। परन्तु इसका विवरण भिन्न है।
आने वाला एक तुच्छ व्यक्ति है
1 जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया?
और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?
2 क्योंकि वह उसके[परमेश्वर] सामने अंकुर के समान,
और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले;
उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते,
और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा
कि हम उसको चाहते।
3 वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था;
वह दु:खी पुरूष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी;
और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया,
और, हम ने उसका मूल्य न जाना।
परमेश्वर के सामने ‘जड़’ (अर्थात् बरगद की शाखा) होने के पश्चात् भी, इस व्यक्ति अर्थात् पुरूष को दूसरों के द्वारा ‘तुच्छ’ और ‘त्यागा हुआ’, ‘पीड़ा से भरा हुआ’ और ‘जिसका कोई मूल्य नहीं होता’ जाना जाएगा। उसे वास्तव में अछूत माना जाएगा। आने वाला यह व्यक्ति या पुरूष भी अनुसूचित जनजातियों (वनवासी) और पिछड़ी जातियों – दलितों का प्रतिनिधित्व अछूतों के रूप में मन से टूटे हुए लोगों के रूप में करने में सक्षम होगा।
4 निश्चय उस ने हमारे रोगों को सह लिया
और हमारे ही दु:खों को उठा लिया;
तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा- कूटा
और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा।
5 परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया,
वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया;
हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी
कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएँ।
हम कभी-कभी दूसरों के दुर्भाग्य पर दोष लगाते हैं, या उन लोगों को निम्न स्तर के होने के रूप में देखते हैं जो समाज में, किसी कारणवश या कर्म, उनके पापों के कारण नीचली श्रेणी में है। इस भविष्यद्वाणी में कहा गया है कि इस व्यक्ति या पुरूष के दुःख इतने अधिक होंगे कि हम ऐसा सोच सकते हैं कि ऐसा उसे परमेश्वर के द्वारा दण्ड दिया जा रहा है। यही कारण है कि वह तुच्छ जाना जाएगा। परन्तु उसे अपने पापों के लिए नहीं – अपितु हमारे लिए दण्डित किया जाएगा। हमारी चंगाई और शान्ति के लिए – वह एक पीड़ादायी बोझ को उठाएगा।
ये भविष्यद्वाणियाँ नासरत के यीशु को क्रूस के ऊपर चढ़ाए जाने के समय पूरी हुईं, जिसे एक क्रूस के ऊपर पीड़ित और दु:खित और ‘भेदा’ गया था। तथापि यह भविष्यद्वाणी उसके इस पृथ्वी पर रहने से 750 वर्षों पहले लिखी गई थी। तुच्छ माने जाने और अपनी पीड़ा में रहने के द्वारा यीशु ने इस भविष्यद्वाणी को पूरा किया और अब सभी पिछड़ी जातियों और जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है।
6 हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे;
हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया;
और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ
उसी पर लाद दिया।
7 वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा
और अपना मुँह न खोला;
जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय
वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है,
वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला।
यह हमारे पाप हैं और धर्म से हमारा भटक जाना है, जिसके लिए यह आवश्यक है कि यह व्यक्ति या पुरूष को हमारे पाप या अपराधों को अपने ऊपर ले। वह हमारे स्थान पर वध किए जाने के लिए शान्तिपूर्वक जाने, विरोध न करने या यहाँ तक कि ‘अपना मुँह न खोलने’ के लिए भी तैयार रहेगा। यह ठीक उसी तरीके से पूरा हुआ जिस तरह से यीशु क्रूस के ऊपर स्वेच्छा से चला गया था।
8 अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए।
उस समय के लोगों में से किसने इस पर ध्यान दिया
कि वह जीवतों के बीच में से उठा लिया गया?
मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी।
यह भविष्यद्वाणी कहती है कि इस व्यक्ति को ‘जीवतों के बीच में से उठा लिया गया’, जो तब पूरा हुआ जब यीशु क्रूस के ऊपर मर गया।
9 उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई,
और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ,
यद्यपि उसने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था
और उसके मुँह से कभी छल की बात नहीं निकली थी।
यीशु की मृत्यु एक ‘दुष्ट’ व्यक्ति के रूप में हुई, यद्यपि उसने ‘किसी प्रकार का उपद्रव न किया था’ और ‘उसके मुँह से छल की कोई बात नहीं निकली थी’। तौभी, उसे एक धनी पुरोहित अरिमितिया के यूसुफ की कब्र में दफनाया गया था। इस प्रकार यह पूरा हुआ कि यीशु दोनों ‘दुष्टों का संगी ठहराया गया’ था, परन्तु साथ ही ‘मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ’ हुआ।
10 तौभी यहोवा अर्थात् परमेश्वर को यही भाया कि उसे कुचले;
उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब वह अपना प्राण दोषबलि करे,
तब वह अपना वंश देखने पाएगा,
वह बहुत दिन जीवित रहेगा;
उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी। (यशायाह 53:10)
यह क्रूर मृत्यु कोई भयानक दुर्घटना या दुर्भाग्य नहीं थी। यह ‘परमेश्वर की इच्छा’ थी।
क्यूँ?
क्योंकि इस व्यक्ति का ‘जीवन’ ‘पाप के लिए दोषबलि’ होगा।
किसके पाप?
हम सभी ‘जातियों’ के लोग जो ‘भटक गए’ हैं। जब यीशु क्रूस पर मर गया, तो यह जातियता या सामाजिक पदवी को एक ओर रखते हुए, हम सभों को पाप से शुद्ध करना था।
11 वह अपने प्राणों का दु:ख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा।
यहाँ भविष्यद्वाणी की लय में परिवर्तन आ जाता है और यह जय पाई हुई हो जाती है। इस भयानक ‘पीड़ा’ (‘तुच्छ’ माने जाने और ‘जीवतों के बीच में से उठा लिए जाने’ और ‘कब्र’ के ठहरा दिए जाने के पश्चात्), इस दास को ‘जीवन की ज्योति’ दिखाई देगी।
वह जीवन में वापस आ जाएगा! और ऐसा करने में यह दास कई लोगों को ‘धर्मी’ ठहरा देगा।
‘धर्मी ठहरा’ दिया जाना ठीक वैसा है जैसा कि ‘धार्मिकता‘ को प्राप्त करना है। हमने देखा कि ऋषि अब्राहम को ‘धर्मी ठहराया गया‘ या ‘धार्मिकता‘ दी गई थी। यह केवल उनके विश्वास के कारण उसी दी गई थी। इसी तरह से यह दास जो अछूत होने के कारण इतना अधिक निम्न स्तर का होगा कि यह ‘कइयों’ को धर्मी ठहराएगा या उन्हें धार्मिकता प्रदान करेगा। यह ठीक वैसा ही है, जैसा यीशु ने अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने के पश्चात् मरे हुओं में से जी उठ कर पूरा किया है और अब वह हमें ‘धार्मिकता’ देने में सक्षम है।
12 इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूँगा,
और वह सामर्थियों के संग लूट बाँट लेगा;
क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया,
वह अपराधियों के संग गिना गया;
तौभी उसने बहुतों के पाप का बोझ उठ लिया,
और अपराधियों के लिये बिनती करता है। (यशायाह 53:1-12)
यद्यपि यह भविष्यद्वाणी यीशु के इस पृथ्वी पर रहने से 750 वर्षों पहले लिखी गई थी, तथापि यह उनके द्वारा अपने पूरे विवरण में पूरी हुई जो यह प्रमाणित करता है कि यह परमेश्वर ही की योजना थी। साथ ही यह इस बात को भी दिखाती है कि यीशु अवर्ण का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जिन्हें प्रायः सबसे निम्न स्तर की श्रेणी का माना जाता है। सच्चाई तो यह है कि वह न केवल अवर्णों के लिए अपितु साथ ही साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के पापों का भी प्रतिनिधित्व करने, उनके पापों को उठाने और उन्हें शुद्ध करने के लिए आया था।
वह आपको और मुझे जीवन का उपहार देने – दोष और कर्मों के पाप से शुद्ध करने के लिए परमेश्वर की योजना के केन्द्र के रूप में आया है। क्या आपके लिए इस तरह के एक बहुमूल्य उपहार को पूरी तरह से समझने और इसके ऊपर ध्यान लगाने के लिए यह बात उपयुक्त नहीं है? इस पर ध्यान लगाने के लिए यहाँ कई तरीके प्रदान किए गए हैं: