यह साईट ख़ुशख़बरी अर्थात् सुसमाचार के बारे में है। परन्तु आप सोच सकता हैं कि इस साईट का उद्देश्य मसीहियत के बारे में है। परन्तु जैसा आप सोचते हैं वैसा नहीं है। मैं इस भिन्नता को आपको बताना चाहता हूँ।
जैसे कि एक हिन्दू और हिन्दी भाषा बोलने वाले में भिन्नता होती है, ठीक वैसा ही कुछ आप इसके प्रति सोच सकते हैं। अधिकांश लोग जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ ऐसा सोचते हैं ये दोनों एक ही हैं और मैंने यहाँ लोगों को इन शब्दों को मिश्रित करते हुए सुना है। इसमें कोई सन्देह नहीं है, कि इन दोनों का एक दूसरे के ऊपर बहुत अधिक प्रभाव है। हिन्दी भाषा बहुत अधिक हिन्दू धर्म से प्रभावित हुई है और हिन्दू धर्म इससे समृद्ध और विकसित हुआ और सामान्य रूप में हिन्दू में ही व्यक्त होता है। परन्तु फिर भी, ऐसे बहुत से हिन्दी भाषा बोलने वाले हैं जो हिन्दू नहीं है (मेरी माता उनमें से एक है), और इसी तरह से वे हिन्दू भक्त जो दूसरी भाषाओं (उदाहरण के लिए तमिल, मलयालम, संस्कृत आदि) में प्रार्थना और आराधना करते भी हैं। यद्यपि इन दोनों का एक के स्थान पर प्रयोग और प्रभाव है – परन्तु फिर यह दोनों एक नहीं है।
ठीक यही कुछ मसीहियत और सुसमाचार के लिए है। ऐसी बहुत सी बातें, मान्यताएँ और प्रथाएँ मसीहियत में हैं जो सुसमाचार का भाग नहीं है।उदाहरण के लिए, जैसे ईस्टर और क्रिसमस के जाने-पहचाने त्योहार हैं। जो कदाचित् मसीहियत को अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। और ये त्योहार प्रभु यीशु मसीह के जन्म और मृत्यु और उसके पुनरूत्थान को स्मरणार्थी हैं जो कि सुसमाचार में प्रगट किया हुआ का देहधारी परमेश्वर है। परन्तु सुसमाचार के सन्देश में या वेद पुस्तक – बाइबल – में कहीं पर भी हम ऐसे किसी भी संदर्भ या आदेश (या ऐसी किसी बात) को नहीं पाते जिसका लेना देना इन त्योहारों के साथ है। मैं इन त्योहारों को मनाते हुए हर्षित होता हूँ – ऐसे ही मेरे अधिकांश मित्र भी जिनकी सुसमाचार में बिल्कुल भी किसी भी तरह की कोई रूचि नहीं है। मसीहियत के इन त्योहारों को मनाने के प्रति सुसमाचार की कोई दिलचस्पी नहीं है। सच्चाई तो यह है, कि पूरे वर्ष में त्योहार के रूप में मनाने के लिए भिन्न ईसाई सम्प्रदायों के अपने भिन्न भिन्न दिन हैं जिनमें वे इन त्योहारों को मनाते हैं।
इसी तरह दिवाली का त्योहार भी एक ईसाई त्योहार नहीं है। परन्तु फिर भी वेद पुस्तक – बाइबल – में यूहन्ना का सुसमाचार यह घोषणा करते हुए आरम्भ होता है कि यीशु के देहधारण से इस अन्धकार से भरे हुए संसार में ज्योति का प्रवेश हुआ। यह त्योहार सुसमाचार से बहुत अच्छी तरह सम्बद्ध होता है। सारांश में, मसीही विश्वासियों को अक्सर त्योहारों को मानने, विशेष तरह के भोजन खाने और निश्चित धार्मिक रीति रिवाजों को पालन करने के लिए जाना जाता है। इनका सुसमाचार से कुछ भी लेना देना नहीं है।
यद्यपि यह सुसमाचार और मसीहियत के मध्य में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं – परन्तु यह एक ही नहीं हैं। सच्चाई तो यह है, कि पूरी बाइबल में शब्द “मसीही” का उल्लेख मात्र तीन बार ही किया गया है, और इसके पहली बार उल्लेख यह इंगित करता है कि यह वह शब्द था जिसे सुसमाचार के विरोधियों ने उपयोग करना आरम्भ किया (प्रेरितों के काम 11:26)। वेद पुस्तक – बाइबल – में शब्द और धारणाओं का उपयोग सामान्य रूप से सुसमाचार को मार्ग और सीधा मार्ग होने का विवरण देने के लिए किया गया है; और वे जो सुसमाचार का अनुसरण करते हैं उन्हें विश्वासी , शिष्य, मार्ग का अनुसरण करने वाले कह कर पुकारा जाता है।
इस साईट का लक्ष्य स्वयं की जानकारी के यह खोज करना है, कि कैसे प्राचीन ऋग्वेद की स्वतंत्रता और अमरत्व, सत्य की खोज और प्रत्याशा, साथ ही साथ आरम्भिक इब्रानी भविष्यद्वक्ताओं या ऋषियों की अपेक्षाएँ यीशु के देहधारण में पूर्ण हुई हैं और अब यह हम सभों के लिए उपलब्ध है। यह वह शिक्षा है जिसके बारे में सोचा जाना चाहिए चाहे एक व्यक्ति हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, या किसी भी अन्य धर्म का अनुसरण करने वाला क्यों न हो – या फिर चाहे एक व्यक्ति किसी भी धर्म का भक्त न हो।
इस कारण, यह साईट उन लोगों के लिए जो जीवन, पाप और मृत्यु से स्वतंत्रता और परमेश्वर के साथ सम्बन्ध के बारे में जानने की उत्सुकता रखते हों। हम मसीहियत के विवादों को अन्य साईटों और अन्य लोगों की सोच के लिए छोड़ देते हैं क्योंकि सुसमाचार को मसीहियत की जटिलताओं के बिना समझना जाना चाहिए। मैं सोचता हूँ आप इसे पा लेंगे, जैसे मैंने पाया, और इस आधार पर सुसमाचार पर्याप्त रूप से रूचिपूर्ण और सन्तोषजनक बन जाएगा।