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दिवाली और प्रभु यीशु

diwali-lamps

दीवाली के लैंप

पहली बार जब मैंने ‘बड़ी निकटता’ के साथ दिवाली का अनुभव उस समय किया जब मैं भारत में कार्यरत् था। मैं यहाँ पर एक महीने रहने के लिए आया था और मेरे रहने के दिनों के आरम्भ के दिनों में दिवाली का त्योहार मेरे चारों तरफ मनाया गया था। जो मुझे सबसे ज्यादा स्मरण है वह पटाखे हैं – हवा धुएँ से भरी हुई थी और इससे मेरी आँखों में थोड़ी सी जलन हो रही थी। मेरे चारों तरफ घटित हो रहे उत्साह के साथ मैं दिवाली के बारे में जानना चाहता था, कि यह क्या है और इसका क्या अर्थ है । और मैं इसके प्रेम में पड़ गया।

‘ज्योतियों या प्रकाश के त्योहार’ ने मुझे प्रेरणा से भर दिया क्योंकि मैं एक विश्वासी हूँ, और यीशु सत्संग जिसे प्रभु यीशु के नाम से भी जाना जाता है, का अनुयायी हूँ। और उसके सन्देश की मुख्य शिक्षा यह है कि उसकी ज्योति अर्थात् प्रकाश हमारे बीच के अन्धेरे के ऊपर विजय को पा लेगा। इस तरह से दिवाली का प्रभु यीशु के साथ मजबूती का सम्पर्क था।

हम में से बहुत से लोग यह जानते हैं कि हमारे बीच के अन्धेरे के साथ एक समस्या है। इस लिए ही कई लाखों की संख्या में कुम्भ मेले के त्योहार में भाग लेते हैं – क्योंकि हम में से लाखों यह जानते हैं कि हमने पाप किया है और यह कि हमें इन्हें धोने और स्वयं को शुद्ध करने की आवश्यकता है। इसी के साथ, प्ररथा स्नाना (या प्रतासना) मंत्र की प्राचीन जानी-पहचानी प्रार्थना इस पाप को या हमारे भीतर के अन्धेरे को स्वीकार करती है।

मैं एक पापी हूँ। मैं पाप का परिणाम हूँ । मैं पाप में उत्पन्न हुआ । मेरा प्राण पाप के अधीन है । मैं सबसे बड़ा पापी हूँ । हे प्रभु जिसके पास सुन्दर आँखें हैं, मुझे बचा ले, बलिदान देने वाले हे प्रभु।

परन्तु अन्धकार, या पाप के हमारे भीतर के ये सारे विचार, हमें उत्साहित नहीं करते हैं। सच्चाई तो यह है कि हम कई बार इन्हें ‘बुरे समाचारों’ के रूप में सोचते हैं। इसी कारण अन्धकार के ऊपर विजय पाता हुआ ज्योति का विचार हमें बहुत अधिक आशा और हर्ष देता है। और इसलिए, मोमबत्तियों, मिठाइयों और पटाखों के साथ, दिवाली इस आशा को व्यक्त करती है कि प्रकाश अन्धकार के ऊपर जय पा लेता है।

प्रभु यीशु – संसार में ज्योति

यही कुछ वास्तव में प्रभु यीशु ने किया। वेद पुस्तक (या बाइबल) में सुसमाचार यीशु को इस तरीके से वर्णित करते हैं:

आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था। यही आदि में परमेश्‍वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है; उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई। उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी। ज्योति अन्धकार में चमकती थी, और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया । (यूहन्ना 1:1-5)

इस तरह से आप देखते हैं, यह ‘शब्द’ उस आशा की पूर्णता है जिसे दिवाली व्यक्त करती है। और यह आशा परमेश्‍वर की ओर से इस ‘शब्द’ में आती है, जिसकी यूहन्ना ने बाद में प्रभु यीशु के रूप में पहचान की। सुसमाचार निरन्तर यह कहता चला जाता है कि

सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया । परन्तु जितनों ने उसके ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्‍वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्‍वास रखते हैं – वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु  परमेश्‍वर से उत्पन्न हुए हैं । (यूहन्ना 1:9-13)

यह विवरण देता है कि कैसे प्रभु यीशु ‘हर एक को ज्योति’ या प्रकाश देने के लिए आया था। कुछ लोग सोचते हैं कि यह केवल कुछ ही लोगों के ऊपर लागू होता है, परन्तु ध्यान दें यह कहता है कि यह प्रस्ताव इस ‘संसार’ में रहने वाले ‘हरेक’ के लिए है कि वह ‘परमेश्‍वर की सन्तान’ बन जाए। यह ऐसा प्रस्ताव है कि हरेक, कम से कम हरेक जो दिवाली जैसे त्योहार में रूचि रखता है, के भीतर के अन्धकार पर प्रकाश विजय पाता है।

प्रभु यीशु के जीवन को पहले से ही हजारों वर्षों पहले भविष्यद्वाणी कर दिया गया था  

प्रभु यीशु के बारे में असाधारण यह है कि उसका देहधारण या मानवातरण होना विभिन्न तरीकों से और आरम्भिक मानवीय इतिहास की घटनाओं में कई तरह से पहले ही भविष्यद्वाणी की गई थी और सूचित कर दिया गया था और इब्रानी वेदों में इसका उल्लेख किया हुआ है। इसलिए उसके बारे में पहले से लिख दिया गया था जबकि वह अभी पृथ्वी पर आया ही नहीं था। और उसके देहधारण के कई भविष्यद्वाणियों को सबसे प्राचीन ऋग्वेद के भजनों में स्मरण किया गया है, जो आने वाले पुरूषा की स्तुति करते हैं, और मानवीय इतिहास की कुछ आरम्भिक घटनाओं का उल्लेख करते हैं, जैसे कि मनु की जल प्रलय, वही व्यक्ति जिसे की बाइबल – अर्थात् वेद पुस्तक –’नूह’ के नाम से पुकारती है। यह प्राचीन विवरण लोगों के पापों के अन्धकार को दर्शाते हैं, जबकि पुरूषा, या प्रभु यीशु के आगमन की आशा का प्रस्ताव देते हैं।

ऋग्वेद की भविष्यद्वाणियों में, पूरूषा, अर्थात् परमेश्‍वर का देहधारण और पूर्ण मनुष्य को बलिदान होने के लिए आ रहा था। यह बलिदान हमारे पापों के कर्मों की कीमत को अदा करने और साथ ही यह हमें भीतर से शुद्ध करने के लिए पर्याप्त था। शुद्धीकरण और पूजा पाठ अच्छे हैं, परन्तु यह हमें केवल बाहर तक ही सीमित रखते हैं। हमें भीतर से शुद्ध होने के लिए बेहतर बलिदान की आवश्यकता है।

प्रभु यीशु की इब्रानी वेदों में भविष्यद्वाणी कर दी गई थी

ऋग्वेद के इन भजनों के साथ ही, इब्रानी वेदों ने इस आगमन के बारे में भविष्यद्वाणी की थी। इब्रानी वेदों में महत्वपूर्ण ऋषि यशायाह हैं (जो 750 ईसा पूर्व रहे, दूसरे शब्दों में प्रभु यीशु के इस पृथ्वी पर आने के 750 वर्षों पूर्व)। उसने उनके आगमन के प्रति कई अन्तर्दृष्टियों को दिया है। उसने दिवाली का पूर्वानुमान लगा लिया था जब उसने प्रभु यीशु के बारे में घोषणा की:

जो लोग अन्धियारे में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी (यशायाह 9:2)।

ऐसी घटना क्यों घटित होगी?  वह निरन्तर आगे बताता है:

क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके काँधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्‍वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा। (यशायाह 9:6)

परन्तु यद्यपि उसने देहधारण किया, वह हमारे लिए एक गुलाम बन गया, कि हमारी अन्धकारमयी आवश्यकता में हमें सहायता दे।

निश्चय उस ने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दु:खों को उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्‍वर का मारा- कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएँ। हम तो सब के सब भेड़ों की समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया। (यशायाह 53:4-6)।

ऋषि यशायाह प्रभु यीशु के क्रूसीकरण का विवरण दे रहे हैं। वह ऐसे वर्णन करते हैं जैसे कि यह 750 वर्षों पहले घटित हुआ है, और वह साथ ही क्रूसीकरण का विवरण इस तरह के बलिदान के रूप में करते हैं जो कि हमें चंगा करता है। और यह कार्य जिसका प्रस्ताव यह गुलाम देगा ऐसा होगा कि जिसे उसे ऐसा करने के लिए परमेश्‍वर कहेगा।

मैं तुझे जाति-जाति (गैर-यहूदी) के लिये ज्योति ठहराऊँगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए (यशायाह 49:6-7)

इस तरह से आप देख सकते हैं ! यह मेरे लिए है और यह आपके लिए है। यह हर एक के लिए है।

पौलुस का उदाहरण

सच्चाई तो यह है कि, एक व्यक्ति जिसने निश्चित ही यह नहीं सोचा कि प्रभु यीशु का बलिदान उसके लिए था वह पौलुस था जिसने यीशु के नाम का विरोध किया। परन्तु उसका सामना प्रभु यीशु के साथ हुआ जिसके परिणाम स्वरूप उसने बाद में कुछ इस तरह से लिखा

इसलिये कि परमेश्‍वर ही है, जिसने कहा, “अन्धकार में से ज्योति चमके,” और वही हमारे हृदयों में चमका कि परमेश्‍वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो। (2 कुरिन्थियों 4:6)

पौलुस का प्रभु यीशु के साथ व्यक्तिगत् सामना हुआ जिसके परिणामस्वरूप ज्योति उसके ‘हृदय में चमकने’ लगी।

यीशु की ज्योति को आपके स्वयं के लिए अनुभव करना

इसलिए अन्धकार और पाप से ज्योति बनने के लिए इस ‘उद्धार’ को पाने के लिए क्या करें जिसके बारे में ऋषि यशायाह ने भविष्यद्वाणी की है, जो प्रभु यीशु के पास है, और जिसका अनुभव पौलुस ने किया? पौलुस इस प्रश्न का उत्तर अपने एक अन्य पत्र में देता है जहाँ पर वह ऐसे लिखता है कि

क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्‍वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है (रोमियों 6:23)

ध्यान दें कि वह कैसे कहता है कि यह एक ‘वरदान’ या उपहार है। एक उपहार, अपनी परिभाषा से ही कमाया नहीं जा सकता है। कोई बस केवल आपको यूँ ही एक उपहार दे देता है जिसे आपने कमाया नहीं है जिसके लिए आपने अच्छे कर्मों को नहीं किया

है। परन्तु यह उपहार तब तक आपको कोई लाभ नहीं देगा, जब तक यह आपकी अपनी सम्पत्ति, आपके द्वारा ‘प्राप्त’ कर लिए जाने के द्वारा नहीं बन जाता। इसलिए ही यूहन्ना, जिसका उद्धरण मैंने आरम्भ में किया है ऐसे लिखता है कि

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्‍वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्‍वास रखते हैं (यूहन्ना 1:12)

इसलिए आपको केवल बस इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। आप इसे उससे माँगने के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं जो कि आपको मुफ्त में दिया जाता है । क्योंकि वह जीवित है इसलिए आप उससे माँग सकते हैं। हाँ, वह आपके पापों के लिए बलिदान हुआ, परन्तु तीन दिनों के पश्चात् वापस जीवित हो गया, ठीक वैसे ही जैसे ऋषि यशायाह ने हज़ारों वर्षों पहले भविष्यद्वाणी कर दी थी जब उसने दु:ख उठाने वाले सेवक के बारे में लिखा था

वह अपने प्राणों का दु:ख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा, और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा (यशायाह 53:11)

इस तरह से प्रभु यीशु जीवित है और आपकी प्रार्थना को उस समय सुन सकता है जब वह आप इसे उससे करते हैं। आप प्ररथा स्नाना (या प्रतासना) मंत्र की प्रार्थना को उससे कर सकते हैं और वह आपकी सुनेगा और बचा लेगा क्योंकि उसने अपने बलिदान को आपके लिए दे दिया है और अब उसके पास सभी तरह का अधिकार है। यहाँ एक बार फिर से वह प्रार्थना दी गई है जिसे आप उससे कर सकते हैं।

मैं एक पापी हूँ। मैं पाप का परिणाम हूँ । मैं पाप में उत्पन्न हुआ । मेरा प्राण पाप के अधीन है । मैं सबसे बड़ा पापी हूँ । हे प्रभु जिसके पास सुन्दर आँखें हैं, मुझे बचा ले, बलिदान देने वाले हे प्रभु।

आपका अन्य लेखों को भी यहाँ से पढ़ने के लिए स्वागत है। ये मानवीय इतिहास से आरम्भ होते हैं और संस्कृति और इब्रानी वेदों में दी हुई अन्धकार से हमें बचाने की और ज्योति में ले आने की परमेश्‍वर की इस योजना को मात्र एक उपहार के रूप में दिखाते हैं। जैसे जैसे मुझे समय मिलता है मैं और भी अन्य लेखों को इनमें जोड़ता चला जाऊँगा । यदि आपके पास कोई प्रश्न है तो आपका मुझसे सम्पर्क करने के लिए स्वागत है।

इस दिवाली पर, जब आप मोमबत्तियों को जलाते हैं और उपहारों को एक दूसरे को देते हैं, मेरी प्रार्थना है कि आप आन्तरिक ज्योति अर्थात् प्रकाश के उपहार का अनुभव प्रभु यीशु की ओर से करें जैसे पौलुस ने अनुभव किया था और कई वर्षों पहले परिवर्तित हो गया था और जिसका देने के लिए आपको भी प्रस्ताव दिया गया है । दिवाली मुबारक हो!