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यदि अवधारणाओं के मतभेदों को ठीक से न समझा जाए तो सम्बन्धित अवधारणाएं भ्रम पैदा कर सकती हैं। दक्षिण एशियाई भाषाएँ इसका एक अच्छा उदाहरण प्रदान करती हैं।

कई पश्चिमी लोग हिन्दी (भाषा) और हिन्दू (जीवन का कर्मकाण्डी या धार्मिक तरीका) में अन्तर नहीं करते हैं। शब्द एक जैसे लगते हैं और चूंकि ‘दोनों भारत से आते हैं’ इसलिए उन्हें लगता है कि वे एक जैसे हैं। आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि ‘वह पुरुष हिन्दू बोलता है’ और ‘वह स्त्री एक हिन्दी है’, जो शब्दों के प्रति गलतफहमी को दर्शाता हैं।

कुछ पश्चिमी लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि दक्षिण एशिया में कई भाषाएँ बोली जाती हैं। अक्सर यह माना जाता है कि हर कोई ‘वहाँ पर’ हिन्दी (या हिन्दू) बोलता है। वे इस बात की सराहना नहीं करते कि लाखों लोग मलयालम, तमिल, तेलेगु, ओडिया, मराठी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, पंजाबी, नेपाली जैसी विविध भाषाओं को बोलते हैं।

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हिन्दी हिन्दू धर्म से प्रभावित है और हिन्दू अवधारणाएँ अक्सर हिन्दी में व्यक्त की जाती हैं। यद्यपि, कई हिन्दी भाषी लोग ऐसे हैं, जो हिन्दू नहीं हैं। इसी तरह हिन्दू भक्त अन्य भाषाओं (तमिल, मलयालम, आदि) में प्रार्थना और पूजा करते हैं। इन दोनों पर एक दूसरे की परतें पाई जाती हैं और यह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं – तथापि वे एक जैसे नहीं हैं।

दक्षिण एशियाई भाषा की लिपियाँ

यद्यपि ये भाषाएँ एक दूसरे से भिन्न हैं, तथापि वे अपने इतिहास के द्वारा एकता में पाई जाती हैं। दक्षिण एशिया में पाई जाने वाली सभी तरह की लेखन पद्धतियाँ ब्राह्मी लिपि से आती हैं। यह लिपि ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी के मध्य पूर्व में प्राचीन फ़ोनीशिया (= पालियो-इब्रानी) से प्राप्त हुई थी।

प्राचीन मुहरों पर फ़ोनीशिया लिपि (= पालियो-इब्रानी) को अंकित किया गया है

यह स्पष्ट नहीं है कि यह लिपि दक्षिण एशिया में कैसे आई, यद्यपि एशिया में इब्रानी लोगों के निर्वासन पर आधारित एक प्रमुख सिद्धान्त इस बात का तर्क प्रस्तुत करता है। ब्राह्मी लिपि दो मुख्य समूहों: उत्तरी और दक्षिणी ब्राह्मी लिपि में विभाजित है। उत्तरी ब्राह्मी लिपि देवनागरी और नन्दिनागरी में विकसित हुई जो संस्कृत और उत्तरी भारत (हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगाली, नेपाली, पंजाबी) की भाषा बन गई। द्रविड़ भाषाओं ने दक्षिणी ब्राह्मी लिपि को अपनाया, जिसे आज मुख्य रूप से तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में सुना जाता है।

ईसाई धर्म और सुसमाचार भी एक जैसे नहीं हैं

जैसा कि हिन्दी और हिन्दू ने एक-दूसरे को प्रभावित किया है, परन्तु वे एक जैसे नहीं हैं, ठीक ऐसा ही सुसमाचार और ईसाई धर्म के साथ भी है। ईसाई धर्म एक सन्देश के प्रति एक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया है। इसलिए ईसाई धर्म में रीति-रिवाज, मान्यताएँ और प्रथाएँ पाई जाती हैं, जबकि सुसमाचार में ऐसा नहीं मिलता है। उदाहरण के लिए, ईस्टर और क्रिसमस के प्रसिद्ध त्योहारों को लें, जो शायद ईसाई धर्म का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व करते हैं। ये त्यौहार यीशु मसीह के जन्म, मृत्यु और पुनरुत्थान, और सुसमाचार में प्रकट हुए परमेश्वर के देहधारण की याद दिलाते हैं। परन्तु इनमें कहीं भी सुसमाचार का सन्देश नहीं मिलता है, और न ही वेद पुस्तक (बाइबल) इन त्योहारों के बारे में कोई सन्दर्भ या इन्हें मनाए जाने का आदेश देती है। सुसमाचार और ईसाई धर्म के ऊपर एक दूसरे की परत तो अवश्य पाई जाती परन्तु वे एक जैसे नहीं हैं। वास्तव में, पूरी बाइबल (वेद पुस्तक) में केवल तीन बार ही शब्द ‘मसीही’ या दूसरे शब्दों में ईसाई का उल्लेख मिलता है।

जैसा कि दक्षिण एशियाई भाषाओं की अपनी लिपियों के विकास का एक लम्बा और जटिल इतिहास है, ठीक वैसे ही सुसमाचार ईसाई धर्म की तुलना में अत्याधिक पुराना है। सुसमाचार के संदेश की घोषणा मानवीय इतिहास के आरम्भ में ही कर दी गई थी, इस प्रकार यह ऋग्वेद के सबसे पुराने हिस्सों में भी देखा जाता है। अब्राहम ने इसे 4000 वर्षों पहले ही गतिमान करते हुए स्थापित कर दिया था, जिसके वंशज दक्षिण एशिया में (अ)ब्राह्मिक लिपि को लाए। दक्षिण एशियाई भाषाओं के साथ ही, सुसमाचार ने विभिन्न लिपियों का विस्तार किया, जो कि आईं और समाप्त हो गईं, और ऐसे साम्राज्यों का जो आए और ख़त्म हो गए। परन्तु आरम्भ से ही इसका दायरा सभी देशों के लोगों के लिए था, चाहे उनकी संस्कृति, भाषा, लिंग, जाति या सामाजिक स्थिति कोई भी क्यों न रही हो। सुसमाचार एक प्रेम कहानी है, जिसका समापन एक विवाह के साथ होता है।

सुसमाचार किसके बारे में है?

यह वेबसाइट सुसमाचार  के बारे में है, ईसाई धर्म  के बारे में नहीं। मूल रूप से सुसमाचार को वर्णन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले शब्द मार्ग और सीधा मार्ग (इसमें धर्म का विचार मिलता है) हैं। जो लोग सुसमाचार का अनुसरण करते हैं, उन्हें विश्वासी, चेले (इसमें भक्त का विचार मिलता है) कहा जाता है। सुसमाचार का केन्द्रीय विचार एक व्यक्ति, नासरत का यीशु, परमेश्वर का देहधारी, गुरु है, जिसने मुझ और आप पर भक्ति को प्रदर्शित किया है। उसके आने की योजना समय के आरम्भ में बना ली गई थी। उसे समझना एक योग्य विषय है, चाहे एक व्यक्ति हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, या फिर दूसरे किसी भी धर्म का क्यों न हो – या फिर नास्तिक हो।

यदि आप जीवन के बारे में, पाप और मृत्यु से मुक्ति और परमेश्वर के साथ सम्बन्ध, सुसमाचार के विषयों के बारे में आश्चर्य करते हैं, तो यह वैबसाइट आपके लिए है। ईसाई धर्म की संस्कृति को एक किनारे रखते हुए, आप पाएंगे कि सुसमाचार अत्याधिक रोमांचक और संतोष प्रदान करने वाला है। आप इसे निम्नलिखित दक्षिण एशियाई भाषाओं में देख सकते हैं: अंग्रेजी, हिन्दी, रोमननागरी, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, नेपाली, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम।

विवाह को पूरे संसार की सभी संस्कृतियों के बीच ईश्वरीय दृष्टिकोण से क्यों देखा जाता है? शादी को पवित्र रीति रिवाज क्यों माना जाता है? हो सकता है कि परमेश्वर ने विवाह की रचना की हो, और शादी एक गहरी वास्तविकता को देखने के लिए हमारे लिए एक चित्र के रूप में इसे चिन्हित करती है, जिसने इसकी रचना की है, उसे देखना कठिन हो सकता है, परन्तु एक जो मुझे – और – आपको इसमें प्रवेश होने के लिए इसके लिए आमंत्रित करता है।

पवित्र दक्षिण एशियाई का सबसे पुराना शास्त्र ऋग्वेद, 2000 – 1000  ईसा पूर्व के बीच लिखा गया था। वैदिक परंपरा में लोगों के पवित्र मिलन के रूप में विवाह के इस विचार को देने के लिए यह विवाह (शादी) का उपयोग करता है। इस तरह से, इन वेदों में विवाह लौकिक नियमों पर आधारित है। इसकी रूपरेखा ब्रह्मांड द्वारा तैयार की गई है और इसकी गवाही “स्वयं अग्नि द्वारा पवित्र एकता” के रूप में दी गई है।

लगभग उसी समय-काल में मिलने वाले, इब्रानी वेद, ऋषियों द्वारा लिखी हुईं पुस्तकें थीं, जिन्होंने परमेश्वर से प्रकाशनों को प्राप्त किया था। आज हम इन पुस्तकों को बाइबल के पुराने नियम के रूप में जानते हैं। ये पुस्तकें नियमित रूप से ‘शादी और ‘विवाह का उपयोग करती थीं, ताकि यह पता चले कि परमेश्वर क्या करने वाला है। इन पुस्तकों में किसी के आने का अनुमान लगाया गया था, जो विवाह के संदर्भ में लोगों के साथ एक सनातन काल के बंधन को आरम्भ करेगा। नए नियम या सुसमाचार ने घोषणा की कि यह आने वाला व्यक्ति यीशु – येसु सत्संग था।

इस वेबसाइट में यही विचार पाया जाता है कि प्राचीन संस्कृत और इब्रानी वेद एक ही व्यक्ति का अनुमान लगा रहे थे। इसका खुलासा और आगे किया गया है, परन्तु यहाँ तक ​​कि विवाह के संदर्भ में, सुसमाचारों में पाए जाने वाले यीशु के निमंत्रण और विवाह के बीच मिलने वाली समानताएँ ध्यान आकर्षित करने वाली है।

सप्तपदी: विवाह के सात कदम

विवाह समारोह का केन्द्रीय भाग सात कदम या सप्तपदी सात फेरे होते हैं:

यह तब होता है, जब दूल्हा और दुल्हन सात कदम चलते हैं और प्रतिज्ञा लेते हैं। वैदिक परम्परा में, सप्तपदी की विधि पवित्र अग्नि (आग) के चारों ओर सम्पन्न की जाती है, जिसे अग्नि देवता (ईश्वरीय अग्नि) द्वारा गवाही के रूप में देखा जाता है।

बाइबल इसी तरह परमेश्वर को अग्नि के रूप में चित्रित करती है

परमेश्वर एक भस्म करने वाली आग है।

इब्रानियों 12:29 और व्यवस्थाविवरण 4:24

बाइबल की अन्तिम पुस्तक दिव्य विवाह के इस निमंत्रण की परिणति को ब्रह्मांड के सामने प्रदर्शित किए जाने के रूप में बताती है। इस विवाह के लिए भी सात कदम लिए जाते हैं। यह पुस्तक उन्हें निम्न शब्दों के साथ मुहरोंके रूप में वर्णित करती है:

1जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी । 2फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था, “इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?” 3परन्तु न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य निकला। 4तब मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य कोई न मिला। 5इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, “मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है।

प्रकाशितवाक्य 5: 1-5

विवाह समारोह को मनाया गया

सात सप्तपदी कदमों में से प्रत्येक में, जब दूल्हा और दुल्हिन पवित्र प्रतिज्ञाओं का आदान-प्रदान करते हैं, तब यह पुस्तक प्रत्येक मुहर के खुलने का वर्णन करती है। सातवीं मुहर खोलने के बाद ही विवाह की घोषणा की जाती है:

आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उसकी स्तुति करें, क्योंकि मेम्ने का विवाह आ पहुँचा है, और उसकी दुल्हिन ने अपने आप को तैयार कर लिया है।

प्रकाशितवाक्य 19:7

बारात, विवाह का जुलूस

यह विवाह इसलिए संभव है, क्योंकि दूल्हे ने उस भस्म करने वाली आग की उपस्थिति में दुल्हिन की कीमत को चुका दिया है, और अपनी दुल्हिन के लिए दावा प्रस्तुत करने के लिए, अपने घोड़े पर सवारी करते हुए, आज के विवाहों में बारात की तरह एक स्वर्गीय बारात को लेकर आ रहा है।

क्योंकि प्रभु स्वयं स्वर्ग से नीचे उतरेंगे, एक ज़ोरदार आदेश के साथ, अर्चना की आवाज़ के साथ और भगवान की तुरही पुकार के साथ, और मसीह में मृत पहले उठेंगे। 17 उसके बाद, हम जो अभी जीवित हैं और हवा में प्रभु से मिलने के लिए बादलों में उनके साथ पकड़े जाएंगे। और इसलिए हम हमेशा मालिक के साथ होंगे।

1 थिस्सलुनीकियों 4:16-17

दुल्हिन की कीमत या दहेज

आज शादियों में, दुल्हिन की कीमत और दहेज के बारे में अक्सर चर्चा और विवाद होते रहते है, जिसे कि दुल्हिन के परिवार को दूल्हे और उसके परिवार को प्रदान करना चाहिए जो कि दुल्हिन को कन्यादान  करते समय साथ जाता है। इस आने वाले स्वर्गीय विवाह में, क्योंकि दूल्हे ने दुल्हिन के लिए कीमत को चुका दी है, इसलिए यह दुल्हा है, जो दुल्हिन के लिए उपहार, एक मुफ्त उपहार को लाता है

वे यह नया गीत गाने लगे, तू इस पुस्तक के लेने, और इसकी मुहरें खोलने के योग्य है; क्योंकि तूने वध होकर अपने लहू से हर एक कुल और भाषा और लोग और जाति में से परमेश्‍वर के लिये लोगों को मोल लिया है।

प्रकाशितवाक्य 5:9

आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!और सुननेवाला भी कहे, “आ!जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।

प्रकाशितवाक्य 22:17

विवाह की योजना

आज, या तो माता-पिता शादियों (सुसंगत विवाह) की व्यवस्था करते हैं या जोड़े अपने आपसी प्रेम (प्रेम-विवाह) के कारण शादी करते हैं। किसी भी स्थिति में, आप अपने भावी जीवन साथी और अपने विवाह की व्यवस्था के बारे में पहले से ही बहुत अधिक सोच-समझ कर निवेश करेंगे। जब विवाह का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है, तो विवाह के बारे में बिना जानकारी के रहना बुद्धिमानी की बात नहीं है।

यही कुछ इस आने वाले विवाह और इसके निमंत्रण के बारे में भी सच है। इसी कारण से हमने इस वेबसाइट को बनाया है ताकि आपको परमेश्वर के बारे में जानने और समझने का अवसर मिले जो आपको अपने विवाह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है। यह विवाह एक निश्चित संस्कृति, वर्ग या लोगों के लिए नहीं है। बाइबल बताती है कि:

इसके बाद मैं ने दृष्‍टि की, और देखो, हर एक जाति और कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था, श्‍वेत वस्त्र पहिने और अपने हाथों में खजूर की डालियाँ लिये हुए सिंहासन के सामने और मेम्ने के सामने खड़ी है।

प्रकाशितवाक्य 7:9

ऋग्वेदों से आरम्भ करते हुए हमने उसे आने वाले विवाह को समझने के लिए इस यात्रा की शुरुआत की है, तब हमने संस्कृत और इब्रानी वेदों के संगम को देखा। परमेश्वर इब्रानी वेदों के विवरणों और योजनाओं में इसे प्रकाशित करता रहा है, कि दूल्हा कौन था, उसका नाम क्या था, उसके आने का समय क्या है (पवित्र सात में भी), और वह कैसे दुल्हिन की कीमत को चुकाएगा। हम दूल्हे के आगमन को उसके जन्म के साथ आरम्भ करते हुए, उसके कुछ विचारों को, दुल्हिन की कीमत की अदायगी, अपनी दुल्हिन के लिए उसके प्रेम और उसके निमंत्रण को देखते हैं।

आपको विवाह में शामिल होने की आशा के साथ…

Ragसर्वप्रथम मेरे बारे में कुछ मूल जानकारियाँ…मेरा नाम रागनॉर है। यह स्वीडिश नाम है परन्तु मैं कनाडा में रहता हूँ। मैं विवाहित हूँ और हमारे पास एक लड़का है। मैंने टोरान्टों महाविद्यालय, न्यू ब्राऊनश्विक महाविद्यालय और अकाडिया महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है।

मेरा पालन पोषण एक मध्यम-वर्गीय व्यवसायी परिवार में हुआ। हम मूल रूप से स्वीडन से कनाडा में तब आकर बसे थे जब मैं जवान था, और इसलिए मेरा पालन पोषण विदेशों के कई देशों में रहते हुए हुआ जैसे – अल्जीरीया, जर्मनी और कैमरून और अन्त में महाविद्यालय के अध्ययन के लिए वापस कनाडा में आने के द्वारा। मेरी माँ का जन्म भारत में हुआ था और वह वहीं पली बढ़ी थी। वह धाराप्रवाह हिन्दी बोलती है। जब मैं बड़ा हो रहा था, तब वह मुझे चित्रों को दिखाते हुए भिन्न देवी देवताओं के बारे में बताती थी जिन्हें उसने एक पुस्तक के रूप में एकत्र की हुई थी। इस तरह से जब मेरा पालन पोषण पश्चिम के देशों में हो रहा था और तब बाद में एक मुस्लिम देश में भी, मुझे मेरे परिवार के द्वारा हिन्दू धर्म की जानकारी दी गई। इतना कुछ होने पर भी, प्रत्येक व्यक्ति की तरह मैं भी (और अब भी) पूर्णता के जीवन का अनुभव करना चाहता था – ऐसा जीवन जिसकी विशेषता अन्य लोगों के प्रति संयुक्तता के साथ – सन्तोष, शान्ति का भाव हो और जिसमें अर्थ और उद्देश्य हो।

विविधता से भरे हुए इन समाजों में रहते हुए – जहाँ विभिन्न धर्म के साथ साथ धर्मनिरपेक्षता– और एक उत्सुक पाठक होने के कारण, मैं ऐसे विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ अवगत हुआ कि अन्तिम ‘सत्य’ क्या है और पूर्णता के जीवन को प्राप्त करने के लिए क्या किया जाता है। जो कुछ मैंने अवलोकन किया वह यह था कि यद्यपि मेरे पास (और अधिकांश पश्चिम में रहने वाले लोगों के पास) अभूतपूर्व धन सम्पत्ति, प्रौद्योगिकी और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अवसर थे, परन्तु विरोधाभास यह था कि ‘पूर्णता से भरा हुआ जीवन’ इसकी तुलना में दूर की बात थी। मैंने देखा कि पिछली पीढ़ियों की तुलना में सम्बन्ध अस्थाई और उपयोग के पश्चात् फेंक देने वाले थे। ‘तीव्र प्रतियोगिता’ जैसे शब्दों से वर्णित किया जाता है हम कैसे जीवन को यापन करते हैं। मैंने सुना है कि यदि हमें ‘थोड़ा सा और ज्यादा मिल जाए’ तो हम लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। परन्तु कितना अधिक प्राप्त किया जाए? और कितना अधिक क्या प्राप्ति किया जाए? धन? वैज्ञानिक ज्ञान? प्रौद्योगिकी? सुख?

एक जवान व्यक्ति के रूप में मैंने एक गुस्से को महसूस किया है जो अस्पष्ट बेचैनी के रूप में वर्णित की जा सकती है। क्योंकि मेरे पिता जी अफ्रीका में एक प्रवासी परामर्शदाता थे, इसलिए मैं कई धनी, शिक्षित और सम्पन्न पश्चिमी युवाओं के साथ घुमता रहता था। परन्तु हमें मनोरंजन देने वाली थोड़ी सी बातों के साथ जीवन वहाँ बहुत ही सरल था। इस लिए मेरे मित्र और मैं उस दिन का स्वप्न लेते थे जब हम हमारे अपने देशों में वापस लौटेंगे और टी.वी., अच्छे भोजन, अवसरों और पश्चिमी जीवन की सुगमता के तरीके का आनन्द लेंगे – और तब हम ‘सन्तुष्ट’ हो जाएगे। परन्तु जब कभी भी मैं कनाडा या यूरोप की यात्रा करता था, तब थोड़ी सी प्रसन्नता के पश्चात् बेचैनी वापस लौट आती थी। परन्तु इससे भी ज्यादा दुर्भाग्य की बात, मैंने यह भी ध्यान दिया जो लोग वहाँ रहते थे यह उनमें सदैव के लिए बनी हुई थी। उनके पास चाहे कुछ भी क्यों न था (और उनके पास किसी भी मापदण्ड में बहुत अधिक था), उनमें और अधिक पाने की चाहत सदैव बनी रहती थी। मैंने सोचा कि मैं ‘इसे’ तब प्राप्त कर लूँगा जब मेरे पास एक प्रसिद्ध प्रेमिका होगी। और कुछ समय के लिए ऐसा जान पड़ा कि इसने मेरे भीतर कुछ भर दिया था, परन्तु कुछ महीने के पश्चात् बैचेनी फिर वापस लौट आती थी। मैंने सोचा जब मैं हाई स्कूल से पास हो जाऊँगा तब मैं इसे ‘प्राप्त’ कर लूँगा…क्योंकि तब मुझे कार चलाने का लाईसेंस मिल जाएगा और मैं घुमने फिरने लगूँगा…तब मेरी खोज पूरी हो जाएगी। अब क्योंकि मैं प्रौढ़ हो चुका हूँ, मैं लोगों को सेवानिवृत्ति की बात सन्तुष्टि की टिकट के रूप में करते हुए सुनता हूँ। क्या ऐसा है? क्या हम हमारे सारे जीवन को एक के पश्चात् दूसरी बात की प्राप्ति के पीछे दौड़ते हुए, यह सोचते हुए खो देते हैं, कि किनारे के पास पड़ी हुई अगली वस्तु की प्राप्ति हमें इसे दे देगी, और तब…हमारे जीवन ही समाप्त हो जाते हैं? क्या यह सब कुछ व्यर्थ नहीं जान पड़ता है!

सुलैमान का ज्ञान

इन वर्षों के मध्य में, इस बैचेनी के कारण जो मैंने मुझ में और मेरे चारों ओर देखी, सुलैमान के लेखों ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला। सुलैमान, अपने बुद्धि के लिए प्राचीन इस्राएल में प्रसिद्ध राजा हुआ है, जिसने बाइबल (वेद पुस्तक) के पुराने नियम में कई पुस्तकों को, ईसा पूर्व 950 के आस पास लिखा है। अपनी पुस्तक सभोपदेशक में, वह इस न बचने वाली बैचेनी का विवरण देता है, जिसका वह अनुभव कर रहा था। उसने लिखा।

“मैंने अपने मन से कहा, ‘चल, मैं तुझ को आनन्द से जाँचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो।’…मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से किस प्रकार बहलाऊँ और कैसे मूर्खता को थामे रहूँ, जब तक मालूम न करूँ कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य अपने जीवन भर करता रहे।

मैंने बड़े बड़े काम किए: मैंने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियाँ लगवाई; मैंने अपने लिये बारियां और बाग लगवा लिए, और उनमें भाँति भाँति के फलदाई वृक्ष लगाए। मैंने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उनसे वह वन सींचा जाए जिसमें पौधे लगाए जाते थे। मैंने दास और दासियाँ मोल लीं, औ मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझ से पहिले… थे उसने कहीं अधिक गाय- बैल और भेड़- बकरियों का मैं स्वामी था। मैंने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैंने अपने लिये गवैयों और गानेवालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियाँ भी – जिनसे मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं। इस प्रकार मैं अपने से पहले के सब… से अधिक महान् और धनाढ्य हो गया; तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। और जितनी वस्तुओं के देखने की मैंने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैंने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला” (सभोपदेशक 2:1-10)।

धन, प्रसिद्धि, ज्ञान, परियोजनाएँ, स्त्रियाँ, आनन्द, राज्य, नौकरी, शराब…सुलैमान के पास सब कुछ -हमारे और उसके अपने दिनों में किसी से भी बढ़कर था। आइंस्टीन की बुद्धि, बिल गेट्स का धन, पश्चिमी फिल्मी जगत के हीरो का सामाजिक/यौन सम्बन्धी जीवन, साथ ही शाही वंशावली जैसे ब्रिटेन के राजकीय घराने के प्रिन्स विलियम का है – सब कुछ उसके पास में थे। इसकी तुलना में कौन इस संयोजन को हरा सकता था? आप सोचते होंगे इस तरह के सभी लोग सन्तुष्ट रहे होंगे। परन्तु वह ऐसे निष्कर्ष निकालता है:

“व्यर्थ ही व्यर्थ! व्यर्थ ही व्यर्थ! उपदेशक का यह वचन है। ‘सब कुछ व्यर्थ है!’… मैंने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूँ; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्‍वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगें! मैंने सब कामों को देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; देखो, वे व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है।” (सभोपदेशक 1:1-14)

“… तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं…तब मैं अपने मन में उस सारे परिश्रम के विषय जो मैं ने धरती पर किया था निराश हुआ

, यह भी व्यर्थ और बहुत ही बुरा है। मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उससे उसको क्या लाभ होता है? …यह भी व्यर्थ ही है।” (सभोपदेशक 2:11-23)

आशावाद जैसी कोई बात ही नहीं! श्रेष्ठ गीत में, कविताओं में से एक में, वह अपने कामुकता से भरे हुए, गर्म-जोश प्रेम सम्बन्ध का विवरण देता है – ऐसी बात जो कि जीवन-पर्यन्त सन्तुष्टि देने की सम्भावना सबसे अधिक आभास देती है। परन्तु अन्त में, इस प्रेम सम्बन्ध ने भी उसके कोई बनी रहने वाली सन्तुष्टि प्रदान नहीं की जैसा कि हम सभोपदेशक की पुस्तक से जानते हैं। आनन्द, धन, कार्य, तरक्की, गर्मजोशी से भरा हुए प्रेम जो उसे अन्तत: सन्तुष्टि प्रदान करता, को उसके द्वारा एक माया या छल ही दिखाया गया है।

अब जब कभी भी मैं अपने चारों ओर देखता हूँ, चाहे अपने मित्रों में या समाज में, सुलैमान की तरह ऐसा जान पड़ता है कि पूर्णता के जीवन की खोज ही वह है जिसे दिए जाने का प्रस्ताव और प्रयास चारों ओर दिया जा रहा है। परन्तु उसने मुझे पहले से ही बता दिया है कि वह इन मार्गों से इसे प्राप्त नहीं कर सका है। इसलिए मैंने यह अनुभूति की है कि मैं इसे यहाँ प्राप्त नहीं कर पाऊँगा और मुझे मार्ग रहित यात्रा की ओर देखने की आवश्यकता है।

इन विषयों के साथ ही मैं जीवन के एक अन्य पहलू के लिए भी चिन्तित था। इसने सुलैमान को भी परेशान रखा।

“क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है। सब एक स्थान में जाते हैं; सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। क्या मनुष्य का प्राण ऊपर की ओर चढ़ता है और पशुओं का प्राण नीचे की ओर जाकर मिट्टी में मिल जाता है? यह कौन जानता है?” (सभोपदेशक 3:19-21)

सब बातें सभों को एक समान होती हैं –धर्मी हो या दुष्ट, भले, शुद्ध या अशुद्ध, यज्ञ करने और न करने वाले, सभों की दशा एक ही सी होती है।जैसी भले मनुष्य की दशा, वैसी ही पापी की दशा; जैसी शपथ खाने वाले की दशा, वैसी ही उसकी जो शपथ खाने से डरता है। जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उसमें यह एक दोष है कि सब लोगों की एक सी दशा होती है…उसके बाद वे मरे हुओं में जा मिलते हैं।उसको परन्तु जो सब जीवतों में है, उसे आशा है, क्योंकि जीवत कुत्ता मरे हुए सिंह से बढ़कर है! क्योंकि जीवते तो इतना जानते हैं –कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है।” (सभोपदेशक 9:2-5)

सुलैमान के प्राचीन लेखों ने मुझे भीतर से हिला दिया और मुझे उत्तरों की खोज करने के लिए मज़बूर कर दिया। जीवन, मृत्यु, अमरत्व, और अर्थ के बारे में प्रश्न मेरे भीतर भर गए। हाई स्कूल के अन्तिम वर्ष में हमें साहित्य (कविता, गीत, लघु कथाएँ आदि) के एक सौ लेखों को गद्यावली के रूप में संकलित करने के लिए गृहकार्य दिया गया। मेरी गद्यावली के अधिकांश भाग ने इन्हीं विषयों का अध्ययन किया और इसने मुझे कई अन्य लोगों को ‘मिलने’ और ‘सुनने’ का अवसर प्रदान किया जो इसी तरह के प्रश्नों के साथ परेशान थे। और उनसे मिलने के लिए – मैंने सभी तरह के युगों, शैक्षणिक पृष्ठभूमियों, भिन्न दार्शनिक जीवन शैलियों, धर्मों और शैलियों से चुनाव किया। रोलिंग स्टोन्स द्वारा रचित सन्तुष्टि, पिंक फ्लोइड द्वारा रचित समय, और शैली द्वारा रचित औजाइमेन्डाइस, शमूएल कोलोरिज़, डब्ल्यू एच आऊडेन, शेक्सपियर और इसी तरह के अन्य लोग इसमें सम्मिलित थे।

गुरू साईं बाबा का ज्ञान

जब मैं इंजीनियरिंग का विद्यार्थी था, तो मेरे प्रोफेसरों में एक बंगलोर में रहने वाले गुरू श्री साईं बाबा के भक्त थे और उसने मुझे उनकी कई पुस्तकें पढ़ने के लिए दी, जिन्हें मैंने बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा। और जब मैंने उनके उपदेशों को पढ़ा तो मैंने पाया कि मेरा नैतिक विवेक केवल उनकी नैतिक शिक्षाओं के साथ ही सहमत था। यहाँ पर उसकी पुस्तकों का कुछ अंश है जिसे मैंने मेरे लिए लिख लिया था।

“और धर्म क्या है? जो कुछ आप उपदेश देते हैं उसे अभ्यास में लाना, जो कुछ आप कहते हैं उसे वैसे ही करना जैसे कहा जा रहा है, उपदेश को मानते हुए और इसे अभ्यास में लाते हुए । भले कर्मों को कमाना,

धर्म की लालसा करना;परमेश्‍वर के भय में जीवन यापन करना, परमेश्‍वर तक पहुँचने के लिए जीवन यापन करना: यही धर्म है”सत्य साईं बाबा बोलते हैं 4, पृ. 339.

“वास्तव में आपका कर्तव्य क्या है?….

* सबसे पहले अपने माता पिता की प्रेम और आदर और कृतज्ञता के साथ सेवा करनी ।

* दूसरा, सत्य बोलना और भले कर्मों में व्यवहार करना ।

* तीसरा, जब कभी आपके पास कुछ समय बचे, तब प्रभु के नम को वह जिस भी रूप में आपके मन में है, दुहराते रहना ।

* चौथा, दूसरे के बारे में बुरा बोलने में लिप्त न होना या दूसरों की कमजोरियों की खोज करने का प्रयास नहीं करना।

* और अन्त में, किसी भी रूप में अन्यों को दु:ख नहीं पहुँचाना”सत्य साईं बाबा बोलते हैं 4, पृ. 348-349.

“जो कोई अपने अंहकार को अपने अधीन कर लेता है, अपनी स्वार्थी इच्छाओं पर जय प्राप्त कर लेता है, अपनी वहशी भावनाओं और आवेगों को नष्ट कर देता है, और अपने शरीर को प्रेम करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति का दमन करता है, वह निश्चित ही धर्म के पथ पर अग्रसर है” धर्म वाहिनी, पृ. 4

जब मैंने साईं बाबा के उपदेशों का अध्ययन किया तो मैं इसे दो तरीकों से किया। प्रथम, मैंने यह देखने के लिए किया कि इस पवित्र हिन्दू व्यक्ति ने जो शिक्षा दी थी वह वास्तव में अच्छी थी। क्या मैं उसके साथ जो कुछ उसने कहा था कि यह ‘अच्छा और सत्य’ है, के साथ सहमत था कि वह सच में अच्छा और सत्य था? मैंने पहचान लिया कि जो कुछ उसने इन उपदेशों में कहा था वह अच्छा, वास्तव में अच्छा था। ये वे शिक्षाएँ थीं जिसके अनुसार मुझे जीवन यापन करना चाहिए था। मैं आपको भी निमंत्रण देता हूँ आप इन शिक्षाओं का अध्ययन यह करने के लिए करें कि आपको इन उपदेशों के अनुसार जीवन यापन करना चाहिए या नहीं।

परन्तु यही वह स्थान था जहाँ मेरे सामने एक बड़ी समस्या उठ खड़ी हुई। और यह समस्या उपदेशों में नहीं थी, अपितु मुझ में थी। क्योंकि जब मैंने इन्हें लागू करने का प्रयास किया, चाहे मैं इन शिक्षाओं को कितना भी अधिक क्यों न प्रशंसा करता था और इनके अनुसार जीवन यापन करने की कितना भी क्यों न प्रयास करता था, मैंने पाया कि मैं निरन्तर इसके अनुसार जीवन यापन नहीं कर पा रहा हूँ। मैं निरन्तर इन अच्छे आदर्शों को पालन करने में असफल हो रहा था।

ऐसा जान पड़ता था कि मुझे दो मार्गों में से एक को चुनना है। वह मार्ग जिसे सुलैमान के द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिसके पीछे सामान्यत: पूरा संसार चलता है, स्वयं के लिए जीते हुए, अपने लिए इसके अर्थों, आनन्द या आदर्शों को रचना करते हुए, ऐसा था जिसे मुझे चुनना था। परन्तु मैं जानता था कि सुलैमान के लिए अन्त अच्छा नहीं था – न ही अधिकांश के लिए होता है जिन्हें मैंने देखा था जो इस पथ पर चले थे। सन्तुष्टि अस्थाई और छल के समान थी। जिस पथ को साईं बाबा ने प्रस्तुत किया है वह असम्भव है, कदाचित् उस जैसे गुरू के लिए न हो, परन्तु मेरे जैसे एक ‘सामान्य’ व्यक्ति के लिए यह असम्भव थी। निरन्तर इन आदर्शों के पीछे चलते रहने से मैं स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं कर सकता था – यह दासत्व था।

सुसमाचार – विचार करने के लिए तैयार है

मेरे अध्ययन और खोज में मैंने यीशु (यीशु सत्संग) की शिक्षाओं और उपदेशों को जैसे बाइबल आधारित सुसमाचारों (वेद पुस्तक) में वर्णित है, पढ़ा है। नीचे दिए हुए यीशु के कथन ने मुझे आकर्षित कर लिया

“…मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएँ और बहुतायत का जीवन पाएँ” (यूहन्ना 10:10)

“हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ : और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30)

मुझमें यह बात आई, कि हो सकता है, यह सम्भव हो कि यहाँ पर उत्तर हो जो कदाचित् अन्य मार्गों के अन्त को सम्बोधित कर रहा हो। कुल मिलाकर, सुसमाचार (जो मेरे लिए कम-या-ज्यादा परन्तु अर्थहीन धार्मिक शब्द था) का शाब्दिक अर्थ वास्तव में शुभ सन्देश था? या क्या यह फिर कम-या-ज्यादा परन्तु कोई झूठी शिक्षा थी? इसका उत्तर पाने के लिए मुझे पता था कि मुझे दो मार्गों की यात्रा करने की आवश्यकता थी। प्रथम, मुझे सुसमाचार की समझ की जानकारी को प्राप्त करना आरम्भ करना था। दूसरा, मैं कई भिन्न धार्मिक संस्कृतियों में रहा, कई भिन्न लोगों से मिला और लेखकों को पढ़ा था जिनकी इसके प्रति कई आपत्तियाँ थीं और बाइबल आधारित सुसमाचार के विरोध में कई विरोधी विचार थे। ये अच्छी जानकारी रखने वाले और बुद्धिमान लोग थे। मुझे सुसमाचार के सम्बन्ध में – साथ ही साथ अन्य धर्म सिद्धान्तों के लिए भी – और इन मान्यताओं की जाँच के लिए विश्‍वासी के शुद्ध आधार को विकसित करने की आवश्यकता थी। मुझे सुसमाचार के बारे में आलोचनात्मक तरीके से, बुद्धिहीन आलोचना से परे होकर सोचने की आवश्यकता थी।

यह एक वास्तविक भाव है जब एक व्यक्ति इस तरह यात्रा का आरम्भ करता है जिसमें वह कभी भी पूर्ण रूप से गंतव्य तक नहीं पहुँच पाता है, परन्तु मैंने यह निश्चित ही पता लगा लिया कि सुसमाचार इन विषयों के उत्तर को प्रदान करते हैं। इसका पूर्ण उद्देश्य ही इन्हें – एक पूर्ण जीवन, मृत्यु, शाश्‍वतकाल, और व्यवहारिक सरोकारों को जैसे हमारे पारिवारिक सम्बन्ध में प्रेम, दोष, भय और क्षमा को सम्बोधित करना है। सुसमाचार दावा करते हैं कि यह एक ऐसी नींव है जिसके ऊपर हम हमारे जीवनों को निर्मित कर सकते हैं। हो सकता है कि एक व्यक्ति जरूरी न हो कि सुसमाचार द्वारा प्रदान किए हुए उत्तरों को पसन्द कर ले, हो सकता है कि एक व्यक्ति इसके साथ सहमत न हो या इसमें विश्‍वास न करे, परन्तु यह देखते हुए कि यह मनुष्य के सभी प्रश्नों को सम्बोधित करता हैं यह मूर्खता की बात होगी कि कोई इससे सूचित हुए बिना ही दूर रह जाए।

मैंने साथ ही यह सीखा कि सुसमाचार ने उसी समय मुझे बहुत अधिक परेशान भी कर दिया था। ऐसे समय में जब बहुत सी बातें आरामदायक जीवन यापन करने के लिए हमें प्रलोभित करती हैं, सुसमाचार के प्रति तर्करहित होकर सुन्न कर देती हैं, ने मेरे मन, हृदय, प्राण और सामर्थ्य को चुनौती दे दी कि यद्यपि यह जीवन का प्रस्ताव देती हैं, परन्तु यह एक आसान जीवन का प्रस्ताव नहीं देती है। यदि आप सुसमाचार पर ध्यान देने के लिए विचार करते हुए समय निकालते हैं तो आप भी ऐसा पा सकते हैं।

जबसे मैंने सुसमाचार का अनुसरण करने के लिए अपनी यात्रा का आरम्भ किया है, मुझे पूरे भारत में और यहाँ तक कि नेपाल में कार्य और यात्रा करने का अवसर मिला है। वन सम्बन्धी मेरी इंजीनियरिंग मुझे कई स्थानों पर, विभिन्न सह-कर्मियों के साथ ले गई है। इस संदर्भों में मैं बातचीत करने के लिए योग्य हो सका हूँ और और अधिक आत्मबोध को मैंने प्राप्त किया है कि सुसमाचार वैदिक संदर्भ में कितनी अधिक प्रासंगिक, सत्य और अर्थपूर्ण है। मैं आशा करता हूँ कि आप भी ऐसा ही पाएंगे जब आप सुसमाचार के ऊपर ध्यान

यह साईट ख़ुशख़बरी अर्थात् सुसमाचार के बारे में है। परन्तु आप सोच सकता हैं कि इस साईट का उद्देश्य मसीहियत के बारे में है। परन्तु जैसा आप सोचते हैं वैसा नहीं है। मैं इस भिन्नता को आपको बताना चाहता हूँ।

जैसे कि एक हिन्दू और हिन्दी भाषा बोलने वाले में भिन्नता होती है, ठीक वैसा ही कुछ आप इसके प्रति सोच सकते हैं। अधिकांश लोग जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ ऐसा सोचते हैं ये दोनों एक ही हैं और मैंने यहाँ लोगों को इन शब्दों को मिश्रित करते हुए सुना है। इसमें कोई सन्देह नहीं है, कि इन दोनों का एक दूसरे के ऊपर बहुत अधिक प्रभाव है। हिन्दी भाषा बहुत अधिक हिन्दू धर्म से प्रभावित हुई है और हिन्दू धर्म इससे समृद्ध और विकसित हुआ और सामान्य रूप में हिन्दू में ही व्यक्त होता है। परन्तु फिर भी, ऐसे बहुत से हिन्दी भाषा बोलने वाले हैं जो हिन्दू नहीं है (मेरी माता उनमें से एक है), और इसी तरह से वे हिन्दू भक्त जो दूसरी भाषाओं (उदाहरण के लिए तमिल, मलयालम, संस्कृत आदि) में प्रार्थना और आराधना करते भी हैं। यद्यपि इन दोनों का एक के स्थान पर प्रयोग और प्रभाव है – परन्तु फिर यह दोनों एक नहीं है।

ठीक यही कुछ मसीहियत और सुसमाचार के लिए है। ऐसी बहुत सी बातें, मान्यताएँ और प्रथाएँ मसीहियत में हैं जो सुसमाचार का भाग नहीं है।उदाहरण के लिए, जैसे ईस्टर और क्रिसमस के जाने-पहचाने त्योहार हैं। जो कदाचित् मसीहियत को अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। और ये त्योहार प्रभु यीशु मसीह के जन्म और मृत्यु और उसके पुनरूत्थान को स्मरणार्थी हैं जो कि सुसमाचार में प्रगट किया हुआ का देहधारी परमेश्‍वर है। परन्तु सुसमाचार के सन्देश में या वेद पुस्तक – बाइबल – में कहीं पर भी हम ऐसे किसी भी संदर्भ या आदेश (या ऐसी किसी बात) को नहीं पाते जिसका लेना देना इन त्योहारों के साथ है। मैं इन त्योहारों को मनाते हुए हर्षित होता हूँ – ऐसे ही मेरे अधिकांश मित्र भी जिनकी सुसमाचार में बिल्कुल भी किसी भी तरह की कोई रूचि नहीं है। मसीहियत के इन त्योहारों को मनाने के प्रति सुसमाचार की कोई दिलचस्पी नहीं है। सच्चाई तो यह है, कि पूरे वर्ष में त्योहार के रूप में मनाने के लिए भिन्न ईसाई सम्प्रदायों के अपने भिन्न भिन्न दिन हैं जिनमें वे इन त्योहारों को मनाते हैं।

इसी तरह दिवाली का त्योहार भी एक ईसाई त्योहार नहीं है। परन्तु फिर भी वेद पुस्तक – बाइबल – में यूहन्ना का सुसमाचार यह घोषणा करते हुए आरम्भ होता है कि यीशु के देहधारण से इस अन्धकार से भरे हुए संसार में ज्योति का प्रवेश हुआ। यह त्योहार सुसमाचार से बहुत अच्छी तरह सम्बद्ध होता है। सारांश में, मसीही विश्वासियों को अक्सर त्योहारों को मानने, विशेष तरह के भोजन खाने और निश्चित धार्मिक रीति रिवाजों को पालन करने के लिए जाना जाता है। इनका सुसमाचार से कुछ भी लेना देना नहीं है।

यद्यपि यह सुसमाचार और मसीहियत के मध्य में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं – परन्तु यह एक ही नहीं हैं। सच्चाई तो यह है, कि पूरी बाइबल में शब्द “मसीही” का उल्लेख मात्र तीन बार ही किया गया है, और इसके पहली बार उल्लेख यह इंगित करता है कि यह वह शब्द था जिसे सुसमाचार के विरोधियों ने उपयोग करना आरम्भ किया (प्रेरितों के काम 11:26)। वेद पुस्तक – बाइबल – में शब्द और धारणाओं का उपयोग सामान्य रूप से सुसमाचार को मार्ग और सीधा मार्ग होने का विवरण देने के लिए किया गया है; और वे जो सुसमाचार का अनुसरण करते हैं उन्हें विश्‍वासी , शिष्य, मार्ग का अनुसरण करने वाले कह कर पुकारा जाता है।

इस साईट का लक्ष्य स्वयं की जानकारी के यह खोज करना है, कि कैसे प्राचीन ऋग्वेद की स्वतंत्रता और अमरत्व, सत्य की खोज और प्रत्याशा, साथ ही साथ आरम्भिक इब्रानी भविष्यद्वक्ताओं या ऋषियों की अपेक्षाएँ यीशु के देहधारण में पूर्ण हुई हैं और अब यह हम सभों के लिए उपलब्ध है। यह वह शिक्षा है जिसके बारे में सोचा जाना चाहिए चाहे एक व्यक्ति हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, या किसी भी अन्य धर्म का अनुसरण करने वाला क्यों न हो – या फिर चाहे एक व्यक्ति किसी भी धर्म का भक्त न हो।

इस कारण, यह साईट उन लोगों के लिए जो जीवन, पाप और मृत्यु से स्वतंत्रता और परमेश्‍वर के साथ सम्बन्ध के बारे में जानने की उत्सुकता रखते हों। हम मसीहियत के विवादों को अन्य साईटों और अन्य लोगों की सोच के लिए छोड़ देते हैं क्योंकि सुसमाचार को मसीहियत की जटिलताओं के बिना समझना जाना चाहिए। मैं सोचता हूँ आप इसे पा लेंगे, जैसे मैंने पाया, और इस आधार पर सुसमाचार पर्याप्त रूप से रूचिपूर्ण और सन्तोषजनक बन जाएगा।

आप, मैं, और बाकी की मानवजाति ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जो माया, पाप और मृत्यु से लिपटा हुआ है। मानव इतिहास के आरम्भ से, विचारक, ऋषि और भविष्यद्वक्ताओं ने हमारी मानवीय परिस्थिति के ऊपर चिन्तन किया है और इस अस्तित्व से बचने के लिए मार्ग प्राप्त करने का प्रयास किया है। अधिकांश पवित्र साहित्य इन प्रश्नों को लेकर आरम्भ के समय से इन पवित्र लोगों के द्वारा लिखे गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप से, लगभग ईसा पूर्व 2000-1000 वर्षों के मध्य में लिखे हुए ऋग्वेद सबसे आरम्भिक पवित्र लेख हैं। ऋग्वेद के पवित्र भजन परमेश्‍वर की खोज और माया, पाप और मृत्यु के हमारे इस चक्र से मोक्ष अर्थात् उद्धार की गम्भीर खोज को प्रगट करते हैं।

उपनिषद् की प्रार्थना 

उपनिषद् (वेदों के पश्चात् ईसा पूर्व 800 में लिखा हुए पवित्र साहित्य) की एक जानी-पहचानी प्रार्थना इस खोज को उद्धृत करती है। इसका संस्कृत में और इसका हिन्दी भाषान्तरण यहाँ नीचे दिया गया है

संस्कृति मेंहिन्दी भाषातंरण
असतोमासद् गमय।

तमसोमाज्योतिर्गमय।

मृत्योर्माअमृतम्गमय।

मुझेअसत्यसेसत्यकी ओर ले चल।

मुझे अन्धकार से ज्योति की ओर ले चल।

मुझे मृत्यु से जीवन की ओर ले चल।

मृत्योर्मा अमृतम् गमय। मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल। मुझे अन्धकार से ज्योति की ओर ले चल। मुझे मृत्यु से जीवन की ओर ले चल।

सभी संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों को एक तरफ करते हुए, यह प्रार्थना अमरता के मार्ग को जानने की मानवीय इच्छा को व्यक्त करती है।

प्रतिज्ञा: प्रार्थना का उत्तर आ रहा है

जब भारतीय उपमहाद्वीप में रचित उपनिषदों में संस्कृत भाषा में यह प्रार्थना लिखे जाने के समय के आस पास ही, ज्ञान से भरा हुआ एक ईश्वरीय सन्देश मध्य पूर्व के द्वीपों में सामी इब्रानी में यशायाह नाम के इस्राएली ऋषि या भविष्यद्वक्ता को दिया गया। जब आप इसे पढ़ते हैं तो आप ध्यान देंगे कि यह प्रतिज्ञाएँ उपरोक्त उपनिषद् की प्रार्थना के उत्तर में परमेश्‍वर के द्वारा दी गई हैं।

“मुझ यहोवा ने तुझको धर्म से बुला लिया है;

मैं तेरा हाथ थाम कर तेरी रक्षा करूँगा।

मैं तुझे प्रजा के लिये वाचा

और जातियों के लिये प्रकाश ठहराऊँगा,

कि तू अंधों की आँखें खोले

बन्दियों को बन्दीगृह से निकाले

और जो अन्धियारे में बैठे हैं

उनको कालकोठरी से निकाले।

मैं अन्धों को एक मार्ग से ले चलूँगा जिसे वे नहीं जानते

और उनको ऐसे पथों से चलाऊँगा जिन्हें वे नहीं जानते;

उनके आगे मैं अन्धियारे को उजियाला करूँगा

और टेढ़े मार्गों को सीधा करूँगा।

मैं ऐसे ऐसे काम करूँगा

और उनको न त्यागूँगा।

जो लोग अन्धियारे में चल रहे थे

उन्होंने बड़ा उजियाला देखा;

और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे,

उन पर ज्योति चमकी।” यशायाह 42:6-7, 16, 9:2

सैकड़ों वर्षों पहले लिखी गई उपनिषद् की ये प्रार्थनाएँ और यशायाह के ये ईश्‍वरीय सन्देश ने संसार को उस बात से उलट पुलट कर दिया जिसे शुभ सन्देश कह कर पुकारा जाता है। इस समाचार ने उस समय के संसार को और आज के हमारे जीवनों को परिवर्तित कर दिया है, चाहे हम इसे जानते हैं या नहीं, परन्तु इस समाचार से हम मूल रूप से प्रभावित हुए हैं। इसने पुस्तकों के आविष्कार (कुण्डल पत्रों के विपरीत) को मार्गदर्शन दिया है, दो शब्दों के मध्य रिक्त स्थान, विराम चिन्हों, शब्दों के ऊपर और नीचे लिखे जाने के ढाँचे को, महाविद्यालयों, अस्पतालों और यहाँ तक अनाथालय जिन्हें लोगों के द्वारा तब स्थापित किया गया जब उन्होंने यह समझ लिया था कि कैसे शुभ सन्देश को समाज को प्रभावित करना चाहिए। परन्तु इससे भी अधिक मौलिक, इस समाचार के आगमन ने लोगों के स्वयं को, अन्यों को, जीवन, मृत्यु और परमेश्‍वर के अमरत्व को देखने के दृष्टिकोण को ही बड़ी गहनता से परिवर्तित कर दिया। इस शुभ सन्देश को सुसमाचार के नाम से जाना गया, और उस युग से लेकर आज तक इसने कइयों के हृदयों और मनों की निष्ठा को प्राप्त कर लिया है, अक्षरश: क्योंकि सत्य, स्वतंत्रता और अमरता के लिए हमारी मौलिक आवश्यकता के उत्तरों को देती है।

सुसमाचार का सन्देश नासरत के यीशु नामक व्यक्ति के ऊपर केन्द्रित है। उसने परमेश्‍वर के मानवीय देहधारण होने का दावा किया (और हमने उसके दावों को इस साईट में देख लिया है) जो सत्य, स्वतन्त्रता और अमरता की हमारी आवश्यकता को पूरा कर सकता है।

मैंने इस वेबसाईट को उन सभी रूचि रखनेवाले लोगों के लिए इस शुभ सन्देश के ऊपर, ऋग्वेद के दृष्टिकोण के साथ साथ, बाइबल के दृष्टिकोण से भी विचार करने के लिए एक अवसर प्रदान करने के लिए निर्मित किया है। जब बाइबल को सबसे पहले हिन्दी भाषान्तरित किया गया तो इसे ‘वेद पुस्तक’ या ‘सर्वोच्च ज्ञान की पुस्तक’ की पुस्तक कह कर पुकारा गया था। यह दोनों वेद अमरत्व के पथ को दिखाने की प्रतिज्ञा करते हैं। निश्चित ही इस पर विचार करना लाभप्रद है। मैं आपको इन दोनों वेदों से सुसमाचार के ऊपर विचार करने के लिए निमंत्रण देता हूँ।